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________________ तो ? पानी की बूंद सागर में मिल जाये तो बूंद स्वयं समुद्र बन जायेगी । हमारा अहं पिघल जाता है, जब हम प्रभु में एकाकार बन जाते हैं । फिर अपना अस्तित्व रहता ही नहीं है । 'जब तू था तब मैं नहीं, मैं था तब प्रभु नांय । प्रेमगली अति सांकरी, ता में दो न समाय ।' नौ की मित्रता अखण्ड है । नौ का अंक अत्यन्त चमत्कारी है, अखण्ड है । नौ को किसी भी अंक के साथ गुणा करें, वह अखण्ड ही रहेगा । उदाहरणार्थ - ९ x ३ = २७ (२ + ७ = ९) १ + ८ = ९. किसी भी संख्या का योग कर के उसमें से उतनी संख्या घटाने पर नौ का अंक ही आयेगा । उदाहरणार्थ ९ x २ = १८ (१ + ८ = ९), हैं। नौ - २३, २ + ३ = ५, २३ -- - सिद्धचक्र में नौ पद हैं। नौ लोकान्तिक देव हैं। नौ ग्रैवेयक पुन्य हैं। नौ वाड़ हैं। नौ मंगल हैं। नौ निधान हैं । ऐसी उत्तम वस्तुऐं 'नौ' हैं । नौ की मित्रता अर्थात् सज्जन की मित्रता, जो कदापि टूटेगी नहीं, सदा अखण्ड रहेगी । ५ = १८, आठ (कर्म) की दोस्ती अर्थात् दुर्जन की दोस्ती, जो खण्डित होती ही रहती है । उदाहरणार्थ ८ × १ = ८, ८ x २ = १६, १ + ६ = ७, ८ × ३ २४, २ + ४ = ६, देखो संख्या घटती जाती है न ? नौ कहता है कि आप नौ पद के साथ मित्रता करो । मेरी मित्रता अखण्ड रहेगी । मुक्ति तक अखण्ड । कबीर १२० wwwwwwwwक कहे कलापूर्णसूरि
SR No.032618
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 02 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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