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तीस्मात्तुर - बेंगलोर संघ, वि.सं. २०५१
७-४-२०००, शुक्रवार चैत्र शुक्ला -३ : प्रभात मसाला
गाथा ८४
* गिरिराज की गोद में आ पहुंचे हैं। सामने ही दृष्टिगोचर होता है । जिनालय का शिखर भी दृष्टिगोचर होताहै । जिस प्रकार गिरिराज दृष्टिगोचर होता है, उस प्रकार सिद्ध भी दृष्टिगोचर होने चाहिये । यह गिरिराज सिद्धों का मूर्त्तिमान पिण्ड है, यह लगना चाहिये ।
* जीव पर द्रव्य, क्षेत्र आदि का प्रभाव पड़ता है । जीव का पुद्गलों पर और पुद्गलों का जीव पर प्रभाव पडता ही रहता है, यह विश्व का नियम है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव के आश्रय से ही कर्म उदय में आते हैं । इस समय सबको खांसी आ रही है क्योंकि यहां मिर्चों के पुद्गल हैं। वे चाहे प्रतीत नहीं होते, परन्तु खांसी आदि से वे ज्ञात होते हैं ।
यदि सरोवर के समीप से गुजरें तो शीतलता प्राप्त होती हैं, भट्टी के समीप उष्णता प्राप्त होती है, कोयले के पास कालिमा प्राप्त होती है, उसी प्रकार से निमित्तों के द्वारा आत्मा को उसउस प्रकार का शुभ-अशुभ प्राप्त होता रहता है । कहे कलापूर्णसूरि - २0000000000000000000 १०३)