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में नवकार आत्मसात् करने के लिए समता की आवश्यकता है । समता (सामायिक) के लिए 'करेमि भंते' सूत्र है । नवकार के ६८ अक्षरों को उल्टे करो तो ८६ होंगे । 'करेमि भंते' सूत्र के ८६ अक्षर है । ६ + ८ = १४, ८ + ६ = १४ । 'नवकार' चौदह पूर्व का सार है तो 'करेमि भंते' चौदह पूर्व का संक्षेप है । दूध से घी बनता है वह दूध का सार है, 'मावा' बनता है वह दूध का संक्षेप है । सार और संक्षेप में यह अन्तर हैं ।
* कभी हमारा वचन किसी के द्वारा आदेय न बने तो समझें कि हमारा उसके साथ ऋणानुबंध नहीं है । उसके लिए हायतोबा न करके कर्म की विचित्र परिस्थिति का विचार करें । भगवान की बात नहीं मानता, लेकिन उस कृषक ने गौतम स्वामी की बात मानी । भगवान को देख कर तो वह भाग ही गया था, क्योंकि सिंह के भव के संस्कार अभी तक चालू थे । त्रिपृष्ठ के भव में भगवान ने सिंह को चीर डाला था । उस समय गौतम स्वामी का जीव सारथि था ।
भगवान को भी कर्मों ने नहीं छोड़ा तो क्या वे कर्म हमें छोड़ेंगे ?
नाणं पयासगं सोहओ, तवो संजमो य गुत्तिकरो । तिण्हंपि समाओगे मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥ ८० ॥ ज्ञान प्रकाशक है, तप शुद्धि करने वाला है, संयम गुप्ति करने वाला है । इन तीनों के योग से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है । बन्द अन्धेरे मकान में प्रथम उजाला करना पड़ता है (ज्ञान) उसके बाद झाडू से सफाई करनी होती है (तप) बाहर से आती हुइ आंधी को रोकने के लिए खिड़कियां बन्ध करनी पड़ती है (संयम) आत्म - घर की इसी प्रकार से शुद्धि हो सकती है । आत्म- घर की शुद्धि में सर्व प्रथम ज्ञान का प्रकाश चाहिये । बहुश्रुत ज्ञानी गीतार्थ चन्द्रमा के समान होते हैं, जिनका मुंह देखने के लिए लोग उत्सुक रहते हैं । जिस प्रकार चन्द्रमा में से चांदनी प्रस्फुटित होती है, उस प्रकार बहुश्रुत के मुंह में से जिनवचन निकलते हैं ।
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मैंने अनेक श्लोक कण्ठस्थ किये हुए हैं । अभिधान कहे कलापूर्णसूरि २ wwwwwwwwwww १०१