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चारित्र का सार आत्मानुभूति ! यहीं चारित्र का परमार्थ
* मैं कदापि एक मिनिट भी नहीं बिगाड़ता हूं । 'व्हीलचेअर' में भी समय का उपयोग करता ही रहता हूं, क्योंकि मेरी आयु वृद्ध है । समय नष्ट करना मुझे उचित नहीं लगता ।
* मैं आनन्दघनजी आदि के स्तवन नित्य क्रमशः बोलता ही रहता हूं। क्यों बोलता हूं? इसलिए कि अत्यन्त भावित बने । चाहे जितना विलम्ब होता हो, फिर भी नहीं छोड़ता । ऐसी दृढता होनी ही चाहिये, ताकि कुछ प्राप्त हो सके ।
क्षमा आपकी भूलों का कोई उदारतापूर्वक क्षमा प्रदान कर दे, यह आप चाहते है न ? तो फिर आप दूसरों की भूलों को क्षमा करने में क्यों हिचकिचाते हैं ?
मनुष्य का आभूषण रूप है। रूप का आभूषण गुण है। गुण का आभूषण ज्ञान है और ज्ञान का आभूषण क्षमा है ।
क्रोध की अग्नि से जीवन रेगिस्तान बनता है । क्षमा के अमृत से जीवन वसन्त बनता है । आप जीवन को कैसा बनाना चाहते हैं ?
क्रोध की अग्नि को शान्त करनेवाला क्षमा का शस्त्र जिसके हाथ में है, उसकी सदा विजय होती ही रहती है । क्षमाशील को र पराजित करने की क्षमता (सामर्थ्य) किसकी है ?
कहे कलापूर्णसूरि - २00wwwwwwwwwwwwwwww ९५)