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है । यह बहुत ही बड़ा भय-स्थान है ।
लोगों की आवन-जावन एक पलिमंथ (विधन) है । इससे अभिमान करेंगे तो बात खतम हो गई ।
स्व-प्रशंसा हम करेंगे तो नहीं, किन्तु कोई कर रहा हो तो हम मुस्कराएं भी नहीं, इस प्रकार उपा. यशोविजयजी कहते हैं ।
लेखक, चिन्तक, वक्ता, प्रतिष्ठित पुरुष हम बन जाय, इसमें बहुत बड़ा खतरा है, मोहराजा की बड़ी चाल है ।
पहचान बढेगी उतने गोचरी के दोष बढेंगे । इसलिए ही अज्ञातअपरिचित घरों में से लाने का विधान है। अज्ञात घरों में से निर्दोष गोचरी आने पर कितना आनंद आये ? मन-चाही वस्तु का नहीं, किन्तु निर्दोषता का आनंद ! निर्दोष गोचरी में भी लास्ट में मांडली के पांच दोषों का सेवन करें तो सब व्यर्थ !
पूर्वपुरुष महान शासन-प्रभावक होने पर भी उन्होंने गर्व नहीं किया तो हम कौन से बड़े प्रभावक ?
आचार्य सुस्थित सूरिजी ने इतनी प्रतिष्ठाएं कराई, फिर भी कहीं प्रतिमा पर नाम पढा ? पत्रिका या शिलालेख में हमारा नाम न आने पर हम आग-बबूला हो जाते हैं ।
गौतम स्वामी ने अपना शिष्य-परिवार सुधर्मा स्वामी को सौंप दिया । अतः पूरी परंपरा में गौतम स्वामी का कहीं नाम नहीं ! नाम गया तो क्या गौतम स्वामी दुःखी हो गये थे ?
( **xxxxxxxxxxxx**************** कहे कलापूर्णसूरि - १)
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कहे'