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हम यह मानते है कि क्रोध अपने आप चला जायेगा, प्रयत्न क्या करना ? प्रयत्न किये बिना घर का कचरा भी नहीं जाता तो क्रोध कैसे जायेगा ? उसके लिए क्षमा का प्रयत्न करना पड़ता
अपराधी का अपराध भूल जाना क्षमा है । अपराधी का अपराध नहीं भूलना क्रोध है । हम किस पर ज्यादा जोर देते हैं ? क्षमा आने पर क्रोध भाग ही जाता है ।
क्षमाबहन प्रशमभाई के साथ ही आती है । इन दोनों की उपस्थिति में क्रोध जायेगा ही । .
. गुणी के गुणों को जीवन में उतारना गुणी का उत्कृष्ट बहुमान है। केवल कायिकसेवा नहीं, आत्मिक गुण उतारना उत्कृष्ट भक्ति है । यद्यपि बाह्य सेवा भी उपयोगी है ही ।
. क्षमा, मार्दव, आर्जव एवं मुक्ति (निर्लोभता) ये चारों उत्तम कोटि के बनने पर ही शुक्ल ध्यान में प्रवेश हो सकता है।
मान अपने आप नहीं जाता, मृदुता लाने पर ही मान जाता है ।
झुकना नहीं वह मान है, बड़ाई है । सामनेवाले व्यक्ति को मान देना नम्रता है, मृदुता है ।
हम दोनों में से किसे ज्यादा महत्त्व देते हैं ?
माया को सरलता से और लोभ को निःस्पृहता से जीतने हैं । चारों को जीतने पर मोह निर्बल हो जाता है, वह पराजित हो जाता है ।
मोह जाने पर समस्त विभाव गया ही समझें ।
शंखेश्वर में राजनेताओं की उपस्थिति में एक महात्मा ने भाषण दिया । भाषण कठोर होने से दो-चार नेताओं चलते ही बने, उस प्रकार मोह भी चला जाता है । इम स्वाभाविक थयो आत्मवीर, भोगवे आत्म-सम्पद सुधीर; जेह उदयागत प्रकृति वलगी, अव्यापक थयो खेरवे ते अलगी ॥३३॥
फिर योगी बलवान बनता है, आत्म-सम्पत्ति का भोक्ता बनता है और अन्य लिपटी हुई प्रकृतियों को भी वह झटक देता है ।
चेतना का स्वभाव व्यापक बनना है । गुलाबजामुन खाते समय
५८० ****************************** कहे कलापूर्ण