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इस समय हम कषाय-नोकषाय आदि की आज्ञा से जी रहे हैं, ऐसी प्रवृत्ति कर रहे हैं । फिर भी मानते हैं यह कि हम स्वतन्त्र हैं, हम चाहें वह करते हैं । हमारी स्वतन्त्रता का मोहराजा उपहास कर रहा है । कठपुतली कहती है : 'मैं स्वतन्त्रतापूर्वक नाचती हूं', उसके जैसा हमारा अभिमान है ।
. मिट्टी से घड़ा बनता है, यह सच है । जाओ धरती में से खोदकर घड़े ले आइयें । क्या मिलेंगे ? नहीं मिलेंगे । घड़ों के लिए कुम्हार की सहायता चाहिए । हम भी निगोद में मिट्टी जैसे थे । वहां से हमें निकालने वाले भगवान हैं । उनके द्वारा ही हम भगवत् - स्वरूप प्राप्त करेंगे ।
षट्कारक १. करनेवाला कारक - कर्ता । २. करने का कार्य - कर्म - घड़ा । ३. कार्य का साधन, उपादान एवं निमित्त कारण उपादान - मिट्टी । निमित्त -- दण्ड, चक्र आदि । ४. सम्प्रदान - नये नये पर्यायों की प्राप्ति । मिट्टी - पिण्ड, स्थासक आदि मिट्टी की अवस्थाएं । ५. अपादान - पूर्व पर्याय का नाश, उत्तरपर्याय का उत्पाद ।
६. अधिकरण - समस्तपर्याय का आधार, जैसे घड़े के लिए भूमि ।
रोटी में भी यह कारक घटाया जा सकता है। यही कारक चक्र हमारी आत्मा पर घटित करना है ।
कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ५७३)
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