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'ज्ञाननी तीक्ष्णता चरण तेह, ज्ञान एकत्वता ध्यान गेह; आत्म तादात्म्यता पूर्ण भावे, तदा निर्मलानंद सम्पूर्ण पावे.' ॥२३॥
. हिंसा में जीव का दुःख जानता है फिर भी बचा नहीं सकता, जिसका दुःख सम्यक्त्वी को होता है, इसीलिए वह दुःखी होता है ।
- तलवार तीक्ष्ण होती है तो काम में आती है । ज्ञान तीक्ष्ण हो तो ध्यान हो सकता है । ध्यान तीक्ष्ण हो तो स्वभाव-रमणता हो सकती है ।
बाज़ार में माल खरीदने के लिए रोकड़ा धन चाहिये, उस प्रकार यहां भी रोकड़ा ज्ञान चाहिये । उधार ज्ञान नहीं चलता । युद्ध के मोर्चे पर शस्त्रागार में रखी तोप काम नहीं आती । जो शस्त्र पास में, युद्ध के मैदान पर तैयार हों वे ही शस्त्र काम में आते है। पुस्तकों में तथा नोट बुकों में रहा ज्ञान काम में नहीं आता । जीवन में आत्मसात् किया गया ज्ञान ही काम में आता है । यही चारित्र है, यही ध्यान का घर है ।
जब भी आप निर्मल आनन्द प्राप्त करना चाहते हों तब ज्ञान को तीक्ष्ण बनाना ही पड़ेगा।
ज्ञानी : मान-सरोवरनो हंस मान सरोवरनो हंस गंदा पाणीमां मुख न नाखे, ते मोतीनो चारो चरे, तेम साधक-ज्ञानी संसारना व्यावहारिक प्रयोजनो करवा पडे तो करे, पण तेने प्राधान्य न आपे, परंतु ज्ञानीने मार्गे चाले. जिनाज्ञाने अनुसरे.
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