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विहार करते हुए पूज्यश्री, वि.सं. २०४२ प्रागपर(कच्छ).
१६-११-१९९९, मंगलवार
का. सु. ८
. थर्मामीटर से ज्ञात होती गर्मी भीतर के ज्वर को बताती है, उस प्रकार बहार व्यक्त होते राग-द्वेष आदि भीतर का कर्म-रोग बताते हैं । अध्यात्म-योग के बिना यह कर्म-रोग मिट नहीं सकता ।
होटल में जाकर आप ज्यादा-ज्यादा ओर्डर देते जाओ, त्यों ज्यादा-ज्यादा बिल बढता जाता है । पुद्गल का उपयोग ज्यादाज्यादा करते जायें त्यों-त्यों उसका बिल बढता जाता है ।
. ग्रन्थि-भेद होता है तब केवल प्रभु ही नहीं, जगत के समस्त जीव भी पूर्ण प्रतीत होते है, वे सिद्ध के साधर्मिक प्रतीत होते हैं । 'ज्ञानसार' के प्रथम अष्टक में यही बात समझाई गई है । ऐसा साधक अनन्तकाय कैसे खा सकता है ? प्रत्येक जीव में उसे पूर्णता प्रतीत होती है ।
एक जीव का आप अपमान करते हैं, मतलब आप अपना ही अपमान करते है, यह बात समझनी है । त्रिपृष्ठ ने शय्यापालक का अपमान किया, उसके कानों में सीसा गला कर डाला गया । परिणाम क्या हुआ ? महावीर के भव में कानों में कीलों की वेदना सहन करनी पड़ी । कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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