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भीमासर(कच्छ)अंजनशलाका-प्रतिष्ठा, वि.सं. २०४६
मध।
१४-११-१९९९, रविवार
का. सु. ६
- व्यापार के लिए धन चाहिये । अधिक धन हो तो अधिक माल रख सकने के कारण व्यापार अधिक होता है । धन अर्थात् ज्ञान, माल अर्थात् क्रिया, व्यापार में लाभ अर्थात् कर्म की निर्जरा ।
___अल्प ज्ञान हो तो छोटे व्यापारी अथवा फेरीवालेके जितनी कमाई (कर्म निर्जरा) होती है ।
अधिक ज्ञान हो तो बड़ी दुकान के व्यापारी की तरह भारी कमाई होती है।
ज्ञान की अधिक सम्पत्ति लगाओ, अत्यन्त ही लाभ होगा । इसके लिए गुरुकुल-वास चाहिये, यह न भूलें ।
श्रेष्ठ गुरुकुलवास, श्रेष्ठ साथी, श्रेष्ठ (सुलक्षणयुक्त) उपकरण रखें तो अत्यन्त ही कर्म-निर्जरा रूप लाभ होता है ।
हमारा ज्ञान चाहे अल्प हो, परन्तु अप्रतिहत सामर्थ्ययुक्त ज्ञानी गुरु का ज्ञान हमारे काम आता है ।
हम अपने भाग्य की क्या सराहना करे ? अनायास ही हमें ऐसे गुरुदेव प्राप्त हो गये ।
पुन्य जोरदार हो तो कुलक्षण युक्त साधनों से भी मनुष्य कमा
कहे
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