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हो, परन्तु कल उसमें अमृत आयेगा, ऐसा ज्ञानी देख रहे हैं ।
. पंचवस्तुक में से मैं सब नहीं कहता, आवश्यक बातें ही करता हूं।
गुरु, गच्छ, वसति, संसर्ग, भक्त, उपकरण, तप, विचार, भावना, कथा इन स्थानों में मुनि प्रयत्न करते है ।
. कृपा करके गुरु ने पांच चिन्तामणि तुल्य पांच महाव्रत दिये हैं, उनकी रक्षा कैसे की जायें ? कैसे उनका संवर्धन किया जाये ? यह हमें देखना है । _ 'ज्ञाता धर्म कथा' में वर्णित उन चार पुत्र-वधूओं के समान चार प्रकार के जीव होते हैं :
१. कई खो देनेवाले (उज्झिका) २. कई खानेवाले (भक्षिका) ३. कई रक्षा करनेवाले (रक्षिका) ४. कई संवर्धन करनेवाले (रोहिणी) हमारा नम्बर किसमें है ? अब कम से कम इतना करें :
जिनके आप शिष्य बने हैं, वे (गुरु) आपके लिए पश्चात्ताप नहीं करेंगे कि 'ऐसे को कहां दीक्षा दी ?'
___ संवर्धन न हो तो कोई बात नहीं, कम से कम सुरक्षा तो करें । 'रोहिणी' तुल्य बनने के लिए तो शायद पुन्य चाहिये, लेकिन 'रक्षिका' बनने में तो पुरुषार्थ चाहिये, जो स्वाधीन है ।
. लक्ष्मी की हानि (धन-हानि) होने के कारण : खो जाये, लुट जाये, घर का बुझुर्ग चला जाये ।
उदाहरणार्थ : मोतीशा सेठ के स्वर्गवास के बाद खेमचन्द सेठ की दशा अन्त में निर्धन जैसी हो गई थी ।
मोतीशा सेठ के चीन जानेवाले जहाज के पीछे चांचिये पड़े। सेठ को समाचार मालूम होने पर सेठ ने मनौती मानी - ‘इसमें से जहाज बच जाये और जितना लाभ हो वह मैं सुकृत मार्ग में खर्च करूंगा ।' बारह लाख का लाभ हुआ, जिसमें से कुन्तासर की खाई भर कर मोतीशा सेठ की ढूंक का निर्माण हुआ ।
भादौं शुक्ला ३ को मोतीशा का स्वर्गवास हुआ, परन्तु उससे (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****************************** ५४१)