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स्वामी (भगवान ) भले उपस्थित न हों, परन्तु भोजन परोसनेवाला रसोइया उपस्थित है, फिर आपकी तृप्ति को कौन रोक सकता हैं ?
भिखारी हो, भूख लगी हो, सामने घेवर तैयार हों तो क्या वह इनकार करेगा ? इनकार करे तो वह कैसा कहलायेगा ? हम इस प्रकार के मूर्ख भिखारी हैं । सामने से मिलता है फिर भी इनकार करते हैं ।
'भूख्या ने जिम घेवर देतां, हाथ न मांडे घेलोजी'
फिर भी रसोइया (गुरु) दयालू है। सोचता है कि यह भिखारी बेचारा रोगी है । उसका उपचार करने से रुचि बढती है । उसे तत्त्व-प्रीतिकर पानी (दर्शन), विमला-लोक अंजन (ज्ञान), परम अन्न भोजन (चारित्र) दूंगा तो ठिकाना पड़ेगा; और उस प्रकार करते करते, वह धीरे-धीरे भिखारी को ठिकाने लाता है ।
आप भिखारी के स्थान पर स्वयं को रखें । रसोईये के स्थान पर गुरु को रखें । तो यह सब बातें अच्छी तरह समझ में आ जायेंगी ।
• योग्य दीक्षा पर्याय के बिना, आवश्यक ज्ञान एवं आन्तरिक परिणति की परीक्षा के बिना यदि बड़ी दीक्षा दी जाये तो मिथ्यात्व, अनवस्था आदि दोष लगते हैं ।
बड़ी दीक्षा (उपस्थापना) के लिए तीन मर्यादाएं हैं : जघन्य : ७ दिन । मध्यम : ४ महिने । उत्कृष्ट : ६ महिने ।
हमारी बड़ी दीक्षा १२ महिनों के बाद हुई । पू. पद्मविजयजी महाराज (पू. जीतविजयजी महाराज के गुरु) की बड़ी दीक्षा तेरह वर्षों के बाद हुई जो उनकी अयोग्यता के कारण से नहीं, परन्तु पदवीधर की प्राप्ति नहीं होने के कारण हुई ।
सात दिनों की मर्यादा अपने लिए नहीं है, अमुक साधुओं के लिए ही है।
ऐसा जो नहीं करते उन्हें मिथ्यात्व आदि का दोष लगते है । अध्यात्म गीता :
ते हिंसादिक द्रव्याश्रय करतो चंचल चित्त, (कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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