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* मद्रास (चेन्नई) में अस्वस्थता हुई तब ऐसी स्थिति थी कि सब कुछ मैं भूल गया था । प्रतिक्रमण आदि तो अन्य व्यक्ति ही कराते थे, परन्तु मुहपत्ति के बोल तक मैं भूल गया था । उन्हें भी दूसरे व्यक्ति ही बोलते थे, परन्तु भगवान ने मुझे पुनः स्वस्थ कर दिया ।
उन भगवान को भला कैसे भूला जा सकता है ?
इस समय मैं वाचना आपके लिए नहीं, मेरे लिए देता हूं। मेरा पक्का रहे । भवान्तर में यह सब मुझे साथ ले जाना है।
• स्थान, वर्ण, अर्थ, आलम्बन एवं अनालम्बन - इन पांचों योगों के इच्छा, प्रवृत्ति, स्थिरता एवं सिद्धि ये चार-चार प्रकार हैं ।
इच्छा : उस प्रकार के योगियों की बातों में प्रेम । प्रवृत्ति : पालन करना । स्थिरता : अतिचार-दोषों का भय न रहे ।
सिद्धि : अन्य व्यक्तियों को भी सहज रूप से योग में सम्मिलित करना ।
* 'नवकार' के जाप में एकाग्रता लाने के लिए अक्षरों को मन की कलम से लिखें ।
प्रत्येक अक्षर पर स्थिरता करें । नवकार के जाप के अनुष्ठान में नवकार-लेखन का कार्यक्रम भी होगा । हीरे की चमकदार स्याही से लिखें । कल्पना कम क्यों की जाय ? लिखने के बाद आप उन्हें चमकते हुए निहारें और पढ़ें ।
न..... मो..... अ..... रि..... हं..... ता..... णं..... अचक्षु-दर्शन से पढना है, चर्म-चक्षु से नहीं ।
मन को स्थिर करने की यह कला है । नित्य बारह नवकार इस प्रकार लिखें । भले ही १०-१५ मिनिट इसमें लग जायें । यह वर्णयोग है।
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