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प्रवचन देते हुए पूज्यश्री दि.२१-०१-१९६७, वांकी (कच
८-११-१९९९, सोमवार (धोखा) का. व. ३०
नवकार आराधना : शशिकान्तभाई :
'नमो तित्थस्स' कहकर भगवान भी नमस्कार करते हैं, ऐसे तीर्थ के तीन प्रकार हैं :
१. प्रथम गणधर, २. चतुर्विध संघ, ३. द्वादशांगी ।
नवकार में तीर्थ, तीर्थंकर और तीर्थंकर का मार्ग तीनों हैं । प्रभु ने देने योग्य सभी दे दिया । क्या बाकी रहा ? कितना उपकार ?
चतुर्विध संघ की चेतना पंचपरमेष्ठी की खान है। इसीलिए संघ पच्चीसवां तीर्थंकर है । नवकार का आराधक संघ का अनादर नहीं करता ।
. नवकार दोषत्रयी को (राग, द्वेष, मोह को) रत्नत्रयी के द्वारा निकालता है और कालत्रयी को (भूत, भविष्य, वर्तमान को) तत्त्वत्रयी (देव, गुरु, धर्म) के द्वारा निकालता है ।
• भगवान का शासन मिला । शासन-स्थित साधु एवं नमस्कार मिला । अब क्या चाहिये ?
(एक माला के बाद...)
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कहे