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४. भर्तृत्ववरेण्य । ५. कार्पण्य (दैन्य भाव) । ६. आत्म-निवेदन । गाथा १० : • संसार का नियम है - धनवान के पास मनुष्य धनवान बनते हैं । ज्ञानी के पास मनुष्य ज्ञानी बनते हैं । वैद्य के पास मनुष्य नीरोग बनते हैं :
उस प्रकार प्रभु ! आपके पास रहकर मैं आपके समान न बनूं ?
भगवन् ! संसार के इस नियम का उल्लंघन होता है । भगवन् ! आप मुझे अपने समान बना दो ।
. 'मृत्यु का विचार वैराग्य लाता है, मोक्ष का विचार मैत्री लाता है। यह बात पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी महाराज कई बार कहते थे ।
गाथा ११ : . प्रभु-दर्शन थकावट मिटाता है । प्रभु-दर्शन से समस्त प्रश्न समाप्त हो जाते हैं । दर्शनं देव देवस्य. कैसा दर्शन...?
सात दर्शन : अणु, जगत्, तत्त्व, धर्म, कर्म, आत्म, परमात्म दर्शन ।
प्रदूषण संसार में है। परमात्म-दर्शन में ओक्सिजन (प्राणवायु) ही है।
जहां प्रभु का मिलन नहीं होता वहां अन्य किसी का मिलन भी सही नहीं होता ।
• प्रभु का दर्शन करता है वह दर्शनीय बनता है । प्रभु का स्तवन करता है वह स्तवनीय बनता है। प्रभु की पूजा करता है वह पूजनीय बनता है ।। ॥ १२ ॥ प्रभु का सौंदर्य देह का नहीं, समाधि का है ।
इस सौन्दर्य के दर्शन से हमारे भीतर भी समाधि का, समता का अवतरण होता है । कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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