________________
कोई भी कर्म अपने स्वभाव को रोके बिना नहीं ही रहेगा। जो गुणों को रोकते हो उन्हें उत्तम कैसे कहा जा सकता
इसीलिए ज्ञानी सातावेदनीय कर्म जो सुख प्रदान करता है, उसे भी अच्छा नहीं मानते, क्योंकि वह कर्म आत्मा के अव्याबाध सुख को रोकता है।
आठों कर्मों का राजा मोहनीय है। यह दो गुणों को (दर्शनचारित्र को) रोकता है। इसीलिए मोहनीय के क्षयोपशम के बिना साधना में एक कदम भी आगे बढा नहीं जा सकता ।
जब जब हम गुणों की उपेक्षा करेंगे, तब-तब कर्म-बन्धन होगा ही।
एक भी दोष देखते ही उसे निकालो । जिस प्रकार अग्नि की एक चिनगारी का भी आप विश्वास नहीं करते, उस प्रकार दोष के एक अंश का भी आप विश्वास न करें ।
___ इसीलिए गुणीपुरुषों का आलम्बन एवं अनुमोदन आवश्यक माना है। उसके प्रभाव से हम प्रच्छन्न गुणों का आविष्कार कर सकते हैं ।
__ अब गुण प्रकट करने के लिए पुरुषार्थ का यज्ञ शुरू कर दें, दृढ निर्णय करें कि मुझे ६६ सागरोपम में तो मोक्ष जाना ही है, यदि इससे पहले मोक्ष मिल जाय तो बहुत ही अच्छा है, परन्तु ६६ सागरोपम से ज्यादा विलम्ब तो नहीं ही करना है ।
दीपावली पर्व : आश्विन कृष्णा १४, भक्तामर पूजन । शशिकान्तभाई - . पुष्प के तीन गुण : १. कोमलता - अहिंसा । २. सुगन्ध - संयम । ३. निर्लेपता - तप । . समर्पण के छ: प्रकार : १. अनुकूलता - स्वीकार । २. प्रतिकूलता - वर्जनम् । ३. संरक्षण विश्वास ।
५१० ****************************** कहे