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लकड़ा जड़ है, वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता । उसे जल में डालोगे तो वह स्वयं भी तैरेगा और स्वयं को पकड़ने वाले को भी तारेगा । ज्ञानी भी लकड़े के समान हैं । स्वयं भी तरता है और अन्यों को भी तारता है ।
. तीन प्रकार के जीव :
(१) अतिपरिणत - उत्सर्ग मार्गी - जली हुई रोटी । शक्ति से भी अधिक करनेवाला ।
(२) अपरिणत - अपवाद मार्गी - कच्ची रोटी, शक्ति हो उतना भी नहीं करनेवाला ।
(३) परिणत - समतोल - पकी हुई रोटी, शक्ति के अनुसार करनेवाला ।
- केवली भगवंत ने ज्ञान से जो देखा, उससे विपरीत विधान करने से जिनाज्ञा भंग आदि दोष लगते हैं। ये दोष प्राणातिपात आदि से भी बढ़ जाते हैं, क्योंकि यहां भगवान के प्रति अश्रद्धा हो गई । स्वयं पर अथवा अपनी बुद्धि पर श्रद्धा हुई, भगवान पर नहीं हुई ।
'भगवान भूल गये' ऐसे शब्द कब निकलते हैं ? जब मिथ्यात्व का घोर उदय होता है ।
'भगवान भूल गये' ऐसा वाक्य जमालि ने भगवान महावीर की उपस्थिति में बोला था, आभिनिवेशिक मिथ्यात्व से वे ग्रस्त हुए ।
उत्सूत्र प्ररूपणा के समान कोई पाप नहीं है । प्रश्न : अजैन ध्यान पद्धति में मिथ्यात्व लगता है ?
उत्तर : दूसरी ध्यान पद्धति स्वीकार करनेकी इच्छा कब होती है ? जब भगवान के प्रति अश्रद्धा हो जाती है तब ।
मेरे पास अनेक अन्य ध्यान-पद्धतियां आई है। मैंने उस ओर कभी दृष्टि नहीं डाली । किसी को पूछा तक नहीं । जो मिलेगा वह भगवान की ओर से ही मिलेगा, ऐसा विचार प्रथम से ही था ।
. युगप्रधान आचार्यश्री मंगु अमुक क्षेत्र में स्थिरता करने से रसना के पराधीन बन गये । रात-दिन वे खाने के विचार में ही रहते थे । वे मरकर यक्ष बने (अन्यथा वैमानिक देवलोक से
कहे व
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