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१.
४.
- स्वाध्याय से सात महान् लाभ :
आत्महित का ज्ञान । पारमार्थिक भाव संवर । नवीन जानने से अपूर्व संवेग बढता है । निष्कम्पता आती है ।
उत्कृष्ट तप होता है । ६. कर्मों की निर्जरा होती है । ७. परोपदेश शक्ति आती है ।
- स्वाध्याय उपयोग युक्त होना चाहिये । तोता रटन नहीं चलता । उपयोगपूर्वक यदि आप मुहपत्ति के ५० बोल भी बोलें तो भी काम हो जाये । मैं कहता हं कि केवल एक ही बोल पर चिन्तन करो ।
'सूत्र, अर्थ, तत्त्व करी सद्दहं ।'
यदि इस पर आप सोचेंगे तो प्रतीत होगा कि समग्र जैनशासन इस में समाविष्ट है ।
आप यह न मानें कि केवल बाह्य क्रियाओं से, निष्प्राण क्रियाओं से मोक्ष मिल जायेगा, उन में प्राण भरने पडेंगे ।
'अध्यात्म विण जे क्रिया, ते तनु मल तोले; ममकारादिक योगथी, एम ज्ञानी बोले.'
अध्यात्म-रहित क्रिया अर्थात् देह के उपर का मैल । ऐसी शुष्क क्रियाओं का भी अभिमान कितना ? 'मेरे समान किसी की क्रिया नहीं !'
* भगवान को परोपकार का व्यसन होता है जो कुछ दृष्टान्तों से ज्ञात होगा ।
इनकार करने पर भी भगवान चंडकौशिक को प्रतिबोध देने गये । उन्होंने शूलपाणि, हालिक आदि को प्रतिबोध दिया । संगम को प्रतिबोध नहीं दे सकने के कारण अश्रु छलकाये ।
भगवान ऐसे परार्थ-व्यसनी है, हम कैसे हैं ?
- सच्चा ज्ञान वही है जो गुप्ति से गुप्त एवं समिति से समित बनाये ।
तीन गुप्तियों में मनोगुप्ति सर्वाधिक कठिन है । मन बन्दर से
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