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दावणगिरि - उपधान में पूज्यश्री का कट आउट, किसं. २०५४
३०-१०-१९९९, शनिवार
का. व. ६-७
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पूर्वाचार्यों ने सम्हाल कर रखा, अपने शिष्यों को दिया, अतः श्रुतज्ञान का कुछ उत्तराधिकार हमें प्राप्त हुआ है । हमें भी यह धरोहर अपने अनुगामियों को देनी चाहिये । अपराधी माने जायेंगे । अभी शासन श्रुतज्ञान के ठारह हजार वर्षों तक और चलेगा ।
यदि नहीं दे तो आधार पर साढा
श्रुतज्ञान केवल पढ पढाकर टिकाना नहीं है, उसके अनुसार जीवन जीकर टिकाना है । पढने-पढाने की अपेक्षा श्रुतज्ञान के अनुसार जिया जानेवाला जीवन अधिक प्रभावशाली होता है । हमें पूज्य कनकसूरिजी के जीवन के द्वारा ही बहुत अधिक जानने को मिला है । प्रत्यक्ष जीवन दूसरों के लिए बड़ा आलम्बन है । ✿ स्वाध्याय साधु का जीवन है । इधर-उधर का पठन स्वाध्याय नहीं गिना जाता । स्वाध्याय के समय तो स्वाध्याय करना ही है, परन्तु बीच बीच में भी जहां जहां, जब-जब समय मिले तब-तब भी स्वाध्याय करना है ।
व्यापारी देखता है कि प्रत्येक अवसर पर लाभ कैसे प्राप्त करना, उसी तरह साधु प्रत्येक अवसर पर स्वाध्याय का मौका देखते है । कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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