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थाणा में रंगोली, वि.सं. २०५४
२९-१०-१९९९, शुक्रवार
का. व. ५
अभी पंचवस्तुक में छ: आवश्यक चलते हैं । अवश्य करने योग्य हो वह है आवश्यक ।
ऐसा नहीं है कि शाम को ही छ: आवश्यक करने है । सारा दिन छः आवश्यकों में ही जीना है। प्रत्येक क्षण आवश्यकमय होनी चाहिये । शाम को तो केवल लगे हुए दोषों का प्रायश्चित्त करना है।
. प्रति पल कर्म जगता रहता है तो हम किसी भी क्षण में नींद कैसे कर सकते हैं ? क्या युद्ध के समय सैनिक आराम कर सकता हैं ? हम जितना प्रमाद करेंगे उतना पराजय समीप आयेगा । ऐसा प्रत्येक सैनिक को ध्यान होता है, उस प्रकार साधु को भी ध्यान होता है । राग-द्वेष के विरुद्ध हमारा युद्ध चल रहा
हमने अरिहंत को क्यों देव के रूप में पसन्द किये ? क्योंकि वे राग-द्वेष के विजेता हैं । हमें भी राग-द्वेष-विजेता बनना है । 'कार्यं साधयामि, देहं वा पातयामि ।' की प्रबल भावना चाहिये।
छ: आवश्यक हमें युद्ध में जीतने की कला सिखाते हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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