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थाणा में दक्षिण-प्रदर्शनी, वि.सं. २०५४ छ
२८-१०-१९९९, गुरुवार
का. व. ४
* ज्यों ज्यों बुद्धि, बल आदि घटते गये, त्यों त्यों आगमों के गूढ रहस्यों को समझाने के लिए पूर्वाचार्य अनेक प्रकरण ग्रन्थों की रचना करते गये । अकेले हरिभद्रसूरिजीने १४४० ग्रन्थों की रचना की ।
उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन इस में लगा दिया । उनके बाद हुए प्रत्येक गीतार्थ ने हरिभद्रसूरिजी का समर्थन किया । उन्होंने प्रायः प्रत्येक स्थान पर पूज्य हरिभद्रसूरिजी को आगे किये है ।
गुजराती पठन, बाह्य पठन इतना बढ़ गया कि साधनानुसार पठन सर्वथा भुला दिया गया । सम्पूर्ण जीवन परलक्षी बन गया ।
'अध्यात्म गीता में केवल ४९ गाथा ही हैं, परन्तु यह साधना के लिए अद्भुत ग्रन्थ है । मैं सबको सूचित कर रहा हूं कि 'यह कण्ठस्थ कर लेना ।'
पंचवस्तुक प्रश्न : नौकारसी आदि के पच्चक्खाण लेने के बाद दूसरों के लिए आहार आदि ला सकते हैं? क्योंकि करना, कराना, अनुमोदन करना तीनों रीतियों से पाप का त्याग होता हैं ।
कहे
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