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इस तलवार और ढाल को साथ रखना है, इनका उपयोग करना है।
युद्ध के मैदान में राजपूत (क्षत्रिय) केसरिया करके टूट पड़ते थे । उनका एक ही निश्चय होता था कि या तो विजयी बनकर लौटूंगा, या शहीद हो जाउंगा । कायर बनकर पीठ नहीं दिखाउंगा ।
साधक का भी ऐसा ही निश्चय हो, तो ही कर्म-शत्रु पर विजय प्राप्त हो सकता है ।
साधक यह सोचकर कर्मरूपी सेना पर टूट पडता है कि अब तो हद हो गई। अब मैं कर्म-सत्ता के अधीन नहीं रहूंगा । बहुत हो गया । अनन्त काल बीत गया । अब कहां तक यह गुलामी सहन करूं?'
'देहं पातयामि, कार्यं साधयामि ।' करेंगे या मरेंगे ।
ज्ञान के अध्ययन में, वैयावच्च में, ध्यान में समस्त अनुष्ठानों में ऐसा उत्साह चाहिये, तो ही आप विजय प्राप्त कर सकते हैं ।
उत्साह के बिना तप नहीं हो सकता । अडतालीस लब्धियां तप से ही प्रकट होती हैं । प्रश्न : इस समय कितनी लब्धियां प्रकट होती हैं ?
उत्तर : मुनि ऐसे होते हैं कि लब्धि प्रकट हो जायें तो भी कहते नहीं है । जो लब्धि दिखाना चाहते हैं, उनमें लब्धि प्रकट नहीं होती । इस समय प्रकट नहीं होती, क्योंकि इस समय इतनी निःस्पृहता नहीं रही । शासन-प्रभावना के बहाने भी अहंकार की प्रभावना करने की इच्छा ही छिप्पी होती है।
इस समय आप संयम का श्रेष्ठ पालन करो, वह भी भारी लब्धि मानी जायेगी ।
भरत को नौ निधान आदि मिले थे वे पूर्व जन्म में की हुई वैयावच्च रूप तप-साधना का फल था ।
प्रश्न : तप मंगलरूप है, नवकार भी मंगलरूप कहलाता है । दोनों में कौनसा मंगल समझा जाय ?
उत्तर : नवकार में 'नमो' मंगल है। 'नमो' विनयरूप है । विनय तप का ही भेद है। अतः दोनों एक ही हैं । दोनों महामंगल हैं ।
तप शिव-मार्ग का सच्चा मार्गदर्शक है ।
'भवो भव मुझे बारहों प्रकार का तप करने की शक्ति प्राप्त हो' संकल्प करो तो भी दोष नहीं हैं ।
कहे
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