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कि मुझे मिलने आने के लिए लोग एकत्रित हुए हैं, तो वे तुरन्त ही भाग जाते ।
० तप से कर्मों के आवरण हट जाते हैं। आवरण हटने पर आत्म-शुद्धि बढती है । बढती हुई समता एवं प्रसन्नता भीतर हो रही आत्म-शुद्धि की सूचक हैं ।
. गाथा कण्ठस्थ कर ली अतः ज्ञानावरणीय कर्म हट गया और गाथा याद हो गई । पुनरावर्तन करना बंद कर दिया तो गाथा गई और ज्ञानावरणीय कर्म लग गया, क्योंकि ज्ञानावरणीय कर्म निरन्तर चालु ही है ।
जो बात गाथा के लिए सच है, वही बात समता, सन्तोष, सरलता इत्यादि गुणों के लिए भी सच है । यदि हमने उनकी दरकार नहीं की तो वे गुण चले जायेंगे । धन को नहीं सम्हालोगे तो जाने में देर कितनी ? कमाने में श्रम करना पड़ता है, उस प्रकार उसकी सुरक्षा में भी कम श्रम नहीं है ।
- प्रकट हो चुका सम्यक्त्व टिका रखें तो वह कभी दुर्गति में जाने नहीं देगा । भले ही ६६ सागरोपम आप संसार में रहे, परन्तु सम्यग्दर्शन कभी दुर्गति में नहीं ही जाने देगा । ६६ सागरोपम के बाद क्षायोपशमिक सम्यक्त्व क्षायिक बन जाता है, मोक्षप्रद ही बनता है ।
कुमारपाल महाराजा, श्रेणिक राजा जैसे तो केवल चौरासी हजार वर्षों में मोक्ष जाने वाले हैं ।
. इच्छारोधन तप नमो. । तप को पहचानें कैसे ? इच्छा का निरोध करना ही तप है । तप की यह संक्षिप्त व्याख्या सदा याद रखें ।
उपवास किया, परन्तु रातभर राबड़ी-दूध याद आते रहे तो द्रव्य उपवास तो हुआ, परन्तु इच्छारोध नहीं हुआ ।
अनशन आदि बाह्य तपों में बाह्य इच्छाओं का निरोध है । आभ्यन्तर तप में भीतर की इच्छाओं का निरोध है ।
अनशन में खाने की इच्छा का उणोदरी में ज्यादा खाने की इच्छा का वृत्तिसंक्षेप में ज्यादा द्रव्य खाने की इच्छा का ।
कहे कलापूर्णसूरि -
४५६ ****************************** कहे व