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पदवी-प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ श.१३
२४-१०-१९९९, रविवार
शरद पूर्णिमा
चारित्र के दो प्रकार हैं - देश एवं सर्व से । श्रावकों के लिए देश विरति और साधुओं के लिए सर्व विरति है।
सुव्रत शेठ, सुदर्शन शेठ, आनन्द आदि श्रावक देश विरति के श्रेष्ठ उदाहरण हैं । पेथड़ शाह, देदाशाह, भामाशा आदि श्रावक नगर में, राज्यमें उच्च पद पर भी थे और उस पद पर रहकर श्रावकत्व अत्यन्त श्रेष्ठ प्रकार से देदीप्यमान किया था ।
• चार प्रकार के श्रावक : १. माता-पिता तुल्य । २. भाई तुल्य । ३. मित्र तुल्य । ४. सौतन तुल्य ।
वर्तमान में भी ऐसे उदाहरण देखने को मिलेंगे। कोई मातापिता की तरह साधु का हित ही देखेंगे । कोई मित्र तो कोई भाई के समान बनकर रहेंगे और कोई सौतन की तरह दोष ही देखेंगे ।
सर्व विरतिधर भी उत्तम श्रावकों एवं श्राविकाओं का स्मरण करते हैं । 'भरहेसर सज्झाय' में श्रावक एवं श्राविकाएं ही हैं न ?
******** कहे कलापूर्णसूरि - १
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