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दोनों का जन्म साथ- साथ हुआ है न ?
✿ ज्ञान अज्ञान - अन्धकार का नाश करता है ।
हमारे समक्ष तेजस्वी पदार्थ सूर्य है, जो सबके लिए प्रत्यक्ष हैं । लाखों, करोड़ों 'बल्ब' भी उसकी बराबरी नहीं कर सकते । ज्ञान भी दिवाकर (सूर्य) है । जो दिवस का सृजन करता है वह दिवाकर (सूर्य) कहलाता है ।
हमारे भीतर भी मोह-निशा को नष्ट करनेवाला अध्यात्म-दिवस का सृजन करनेवाला ज्ञान - सूर्य है ।
सूर्य अस्त हो जायें और अन्धकार छा जाता है । चिन्तन-मनन का द्वार बन्द कर दें ।
मानस - मन्दिर में अन्धकार छा जायेगा ।
ऐसा अन्धकार कि करोड़ों दीपकों से भी नष्ट न हो । ज्ञान गुरु के द्वारा मिलता हैं, अतः गुरु को कभी न छोड़ें । प्रश्न: क्या गुरु दूसरे नहीं बनाये जा सकते ? उत्तर : क्या माता-पिता दूसरे किये जा सकते हैं ? गोद लेने की पद्धति से शायद माता-पिता बदल जाते हैं (तो भी पुत्र मूल माता-पिता को भूलता नहीं है) परन्तु यहां गुरु कैसे बदले जा सकते हैं ?
सत्ता में केवलज्ञान का सूर्य झगमगा रहा है । ज्ञानावरणीयरूपी घोर बादलों ने उस कैवल्य-सूर्य को ढक दिया है । कैवल्य सूर्य पर छाये हुए आवरण को हटाने के लिए ही अध्ययन करना है, प्रभु भक्ति करनी है ।
ज्यों ज्यों भक्ति करते जाओगे, त्यों 'जेम जेम अरिहा सेविए रे, तेम
भगवानने स्वयं कहा है
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मुझे मानता है'
'जो गुरुं मन्नइ सो मं मन्नइ'
त्यों ज्ञान खुलता जायेगा । तेम प्रगटे ज्ञान सलूणा...'
पं. वीरविजयजी
'जो गुरु को मानता है वह
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गुरुपद की स्थापना करनेवाले भी भगवान ही हैं न ? क्या भगवान ने कभी कहा है कि 'मेरी अपेक्षा गुरु को कम महत्त्व देना ।'
********** कहे कलापूर्णसूरि - १