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क्षमा आदि दस धर्म के धारक, स्याद्वाद - नयवाद से कथन करने वाले संसार से डरने वाले, पाप से भयभीत होने वाले, शासन की धुरा के वाहक, वाचना-दान में समर्थ उपाध्याय को नमस्कार हो । 'द्वादश अंग सज्झाय करे जे, पारग-धारग तास.'
द्वादश अंगों का वे स्वाध्याय तो करते ही हैं, परन्तु पारगामी भी होते हैं. धारक भी होते हैं और सूत्र-अर्थ का विस्तार करने वाले भी होते हैं ।
___टीका आदि इनके साक्षी हैं । हरिभद्रसूरिजी ने दशवैकालिक के प्रथम अध्ययन में ही कितना विस्तार किया है ?
आवश्यक टीका में बहुत विस्तार है, फिर भी वे लिखते हैं कि यह लघु टीका है ।
भविष्य में कोई समझेगा, यह समझकर महापुरुषों ने टीका आदि लिखी हैं ।
'ध्यान-विचार' ग्रन्थ मुझे मिला । मैं अत्यन्त प्रसन्न हुआ । मैने विस्तारपूर्वक लिखा - 'भविष्य में किसी जिज्ञासु के लिए काम आयेगा, इस आशय से लिखा है, परन्तु अभी तक एक भी पत्र नहीं आया जिसमें पूछा हो - 'मुझे यह समझ में नहीं आया, मार्ग-दर्शन करें' ! खोले ही कौन ?
पत्थर तुल्य जड़ शिष्य में भी उपाध्याय की कृपा से ज्ञान के अंकुर फूट सकते हैं ।
ऐसा मूर्ख विद्वान बन जाये, फिर वह उपकारी उपाध्याय को क्या भूल सकता हैं ?
'राजकुंवर सरिखा गणचिन्तक' .
आचार्य राजा हैं तो उपाध्याय राजकुमार हैं, युवराज हैं। युवराज भावी राजा हैं । उपाध्याय भावी आचार्य है ।
उनका तो भव-भय मिट गया, परन्तु उनका वन्दन करनेवाले का भी भव-भय मिट जाता है ।
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