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________________ ११दीक्षा प्रसंग, मजाकच्छ वि.सं. २०२८, माघ शु.१४.,दि. २९-१-१९७२ १३-१०-१९९९, बुधवार आ. सु. ४ . सायं प्रतिक्रमण के बाद कुछ समय गुरु के पास बैठे, क्यों ? एक प्रकार का विनय है। यह विनय चला न जाये अतः बैठना चाहिये । श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता, भुवनदेवता (भवनदेवता) आदि की स्तुति आचरणा से करनी है । आगम प्रमाण हैं उस प्रकार आचरणा भी प्रमाण हैं । सुबह प्रतिक्रमण ठाने के बाद प्रथम काउस्सग्ग चारित्र की शुद्धि के लिए है, दूसरा काउस्सग्ग दर्शन-शुद्धि के लिए और तीसरा काउस्सग्ग अतिचार शुद्धि के लिए है । ('सयणासणन्न-पाणे' वाला) - दिन में 'करेमिभंते' कितनी बार ? नौ बार । बार-बार सामायिक सूत्र का उच्चारण इसलिए करना है कि समताभाव आये, समताभाव का स्मरण होता रहे । यदि समता के स्थान पर विषमता आई हो तो उसे दूर करने की इच्छा हो । कषायों में रहना स्वभाव है कि विभाव में रहना हमारा स्वभाव है ? चौबीस घंटों में कितने घण्टे स्वभाव में ? और कितने घण्टे **** कहे कलापूर्णसूरि - १) ३९२ *****************************
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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