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चाहिये, पंन्यासजी महाराज परम मध्यस्थता की ओर चले गये ।
. प्रभु में गुण, पुन्य आदि का प्रकर्ष है । इसीलिए वे अचिन्त्य शक्ति के स्वामी बने हुए हैं ।
निर्मल प्रज्ञावाले को ही यह समझ में आयेगा ।
पंचसूत्र की यह बात 'अचिंत्तसत्तिजुत्ता हि ते भगवंतो' निर्मल बुद्धिवाले को ही समझ में आयेगी । भगवान की अचिन्त्य शक्ति जानने के लिए ऐसी दृष्टि खुलनी चाहिये ।
तत्त्वदृष्टि - व्यवहारदृष्टि तत्त्वदृष्टि ज्ञान स्वरुप छे, जेमां वस्तुनुं सत्स्वरुप प्रकाशे छे. व्यवहारदृष्टि क्रिया स्वरुप छे. ते क्रियाओ एटले अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य अने अपरिग्रहनु आचरण. माटे तत्त्व- लक्ष्य करवू अने शक्यनो प्रारंभ करवो.
कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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