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क्रिया करी नवि साधी शकिये, ए विखवाद चित्त सघले ।' पूज्य आनन्दघनजी के इन उद्गारों पर चिन्तन करें ।
महापुरुषों के ग्रन्थ मिलना, अर्थात् महापुरुषों के साथ मिलन होना समझें । आनन्दघनजी, देवचन्द्रजी जैसे योगियों की कृतियां हमें प्राप्त होती है; यह हमारा अहोभाग्य है ।
. पुत्र-पिता, पति-पत्नी आदि आपके सम्बन्धों की प्रीति स्वार्थयुक्त है, मलिन है, सिर्फ भगवान की प्रीति ही निर्मल है ।
- उपर जाने की सीढियों में से कौनसी सीढी महत्त्वपूर्ण है ? सभी सीढियां महत्त्वपूर्ण हैं । उस प्रकार साधना के समस्त सोपान महत्त्वपूर्ण हैं ।
सीढियों पर बीच में ज्यादा समय खड़ा नहीं रहा जा सकता, पीछे से आने वाले धक्के मारेंगे । हम इस समय बीच में है । 'पंथ वच्चे प्रभुजी मल्या, हजु अर्धे जावू ।' चौदह राजलोक में हम बीच में हैं । निगोद से निर्वाण की यात्रा में हम बीच में है । चौदह गुणस्थानकों में हम बीच में है । (इस समय ज्यादा से ज्यादा सातवे गुणस्थानक पर पहुंच सकते हैं) परन्तु बीच में अधिक समय तक नहीं रहा जा सकता । हमारे पीछे अनन्त जीव खड़े हैं, यदि हम आगे नहीं जायें तो पीछे ढकेले जायेंगे । निगोद में जाना पड़ेगा । क्योंकि त्रसकाय में दो हजार सागरोपम से ज्यादा नहीं रहा जा सकता ।
. ज्ञान दो प्रकार का है - सुख-भावित एवं दुःख-भावित ।
सुखभावित ज्ञान, सुखभावित धर्म थोड़ा सा कष्ट आने पर नष्ट हो जाता हैं । दुःखभावित धर्म कष्टों के बीच भी अडग रहता है । इसीलिए परम करुणानिधान भगवान महावीर ने लोच, विहार, भिक्षाचर्या, बाईस परिषह इत्यादि कष्ट बताये हैं। अन्यथा करुणाशील भगवान ऐसा क्यों बताते ?
कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
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