________________
मुंह पर आठ पंखुड़ियोंवाला कमल, 'य' से 'ह' तक के ८ अक्षरों की वहां स्थापना करें । इस प्रकार ध्यान करना है ।
फिर स्वर्णतुल्य चमकते हुए अक्षर आपको घूमते हुए दिखेंगे ।
• मन बालक जैसा है, उसे भटकना अत्यन्त प्रिय है। ऐसे मन को कह देना चाहिये - तुझे भटकना हो तो इन तीनों में ही भटकना ।
१. वर्ण : प्रभु के नाम में रमण करना । २. अर्थ : प्रभु के गुणों में रमण करना । ३. आलम्बन : प्रभु की मूर्ति में रमण करना ।
इन तीनों को चैत्यवन्दन - भाष्य में आलम्बन त्रिक कहा गया है ।
. नवकार गिननेवालों को पूछता हूं - क्या इससे आपका गुरु के प्रति बहुमान बढा ? गुरुके द्वारा आपका भगवान के प्रति प्रेम बढा ?
. दो प्रकार की उपासना :
१. ऐश्वर्योपासना : प्रभु के ऐश्वर्य एवं गुणों का चिन्तन; ज्ञानातिशय आदि चार अतिशयों, अष्टप्रातिहार्य आदि का चिन्तन ।
किसी बड़े सेठ अथवा नेता के साथ सम्बन्ध जोड़ना आप चाहते हैं न ? परन्तु भगवान से अधिक ऐश्वर्यवान दूसरा कौन है ? तो फिर प्रभु के साथ ही सम्बन्ध जोड़ो न ? -
क्या प्रभु के साथ मधुर सम्बन्ध जोड़ने योग्य नहीं है ? २. माधुर्योपासना : प्रभु के साथ मधुर सम्बन्ध जोड़ना ।
- अरविन्द मिल का कपड़ा कहीं से भी खरीदो, वह वही होगा ।
उत्तम, श्रेष्ठ कहीं से भी मिले, वह प्रभु का ही है, चाहे वह किसी भी दर्शन में हो ।
. अनेक बार मुझे विचार आता है कि इन सभी वक्ताओं के समक्ष मैं क्यां बोलूं ? पूरा माल खाली हो गया । भगवान के समक्ष जाकर पुकारता हूं। भगवान के पास प्रार्थना करते ही सब पुराना पं. भद्रंकरविजयजी के पास सुना हुआ याद आ जाता है । आज ही काफी याद आ गया । कहे कलापूर्णसूरि - १
१******************************३३३