SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोदक तैयार होते हैं । ये तीनों कहां मिलते हैं ? तीनों दुकान बताऊं ? देव के पास दर्शन, गुरु के पास ज्ञान और धर्म के पास चारित्र मिलेगा । भक्ति वास्तविक अर्थ में तब ही बनती है जब स्व- पर आत्मा का बोध होता है और बोध होने पर उसकी रक्षा करने की इच्छा हो । 8. स्व- परात्म बोध से अष्टप्रवचन मातारूप तीसरी माता आई । समता - शान्ति : यह ज्ञान की शोभा है; जो ध्यान के द्वारा प्राप्त होती है । त्रिपदी के द्वारा ध्यान प्राप्त होता है । त्रिपदी चौथी ध्यानमाता है । निरपेक्ष मुनि मुनिराज निर्भय केम होय ? शुद्ध चारित्रनी सन्मुख थयेला मुनि जगतना ज्ञेयपदार्थमां ज्ञानने जोडता नथी. ज्ञेय पदार्थने मात्र जाणे छे. वळी तेमने कई छूपाववानुं नथी. कोईनी साथे कंई लेवा देवाना विकल्पो नथी. तेवा मुनिराजने ज्यां लोक अपेक्षा के आकांक्षा नथी त्यां भय क्यांथी होय ? ३२२ ****** ***** कहे कलापूर्णसूरि - १
SR No.032617
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy