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आत्मा में देखता है, वह परमात्मा है ।
. हम परमात्मा को भी पूर्ण मानने के लिए तैयार नहीं है, परन्तु परमात्मा हमें पूर्ण मानने के लिए तैयार है । इतना ही नहीं, वे हमें पूर्ण रूप से देख ही रहे हैं ।
. नवकार में अनन्त अरिहंत आदि की संकल्प शक्ति समाविष्ट है । इसीलिए वह शक्ति का स्रोत है । इसका जाप करने से हमारा संकल्प अशक्त हो तो भी उसका असर होगा ही ।
. नवकार गिनो... गिनते ही रहो । एकाग्रता नवकार ही देगा, प्रभु ही देंगे । हमारा पुरुषार्थ गौण है । प्रभु की कृपा मुख्य है । ऐसा मान कर साधना करें । मंत्र उसे ही फलता है, जिसका हृदय मंत्र एवं मंत्र दाता पर विश्वास रखता हो । नवकार में प्रभु की शक्ति देखने के लिए श्रद्धा की आंखें चाहिये । चर्म-चक्षुओं से अक्षरों के अलावा कुछ भी नहीं दिखेगा ।
. नवकार या प्रभु के गुण, गाने वाले हम कौन ? मानतुंगसूरि जैसे कहते हों, 'जिस प्रकार बालक सागर में प्रतिबिम्बित चन्द्रमा को पकड़ने का प्रयत्न करता है, उस प्रकार आपकी स्तुति करने का मेरा प्रयत्न है ।' तो फिर हम किस खेत की मूली हैं ?
. इस बार तो निश्चय करें कि प्रभु के दर्शन करने ही हैं। सभा - 'आप दर्शन करा दीजिये ।'
'भोजन स्वयं करना पड़ता है। आपके बदले कोई अन्य भोजन नहीं कर सकता । समर्पण भाव हमें बनाना पड़ता है। कोई अन्य समर्पण भाव बनाये तो नहीं चल सकता । हम में यदि समर्पण-भाव होगा तो प्रभु अवश्य ही दर्शन देंगे । आपके हृदय में से अहंकार मिटते ही, अर्ह का प्रकाश प्रकट हुआ समझो । जो खाली होता है वही भरता है । अपने हृदय में जलता अहंकार का दीपक बुझा दें तो परमात्मा की चांदनी आपके हृदय में झलक उठेगी । स्व को अहंकार-रहित बनाना ही समर्पण-भाव है । यही साधना का रहस्य है।
. जगत् के जीवों के साथ हमारा सब से बड़ा सम्बन्ध जीवत्व का है । इससे ज्यादा दूसरा क्या सम्बन्ध हो सकता है ? हमारा सम्बन्ध सिर्फ परिवार तक का है । परिवार के साथ का कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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