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समस्त चिन्ता प्रभु पर छोड़ दें । सब ठीक होकर ही रहेगा । ऐसा दृढ विश्वास रखें । 'माणवकः अग्निः ।' अग्नि के उपयोग वाला माणवक स्वयं अग्नि है । आप यह व्याकरण आदि में पढ चुके हैं । भक्ति मार्ग में यह सूत्र क्यों नहीं लगाते ? अग्नि के उपयोग वाला माणवक अग्नि कहलाता है, तो भगवान के उपयोग वाला भक्त क्या भगवान नहीं कहलायेगा ?
भगवान पर अटूट श्रद्धा उत्पन्न होने के बाद ही हमारी साधना प्रारम्भ होती है, यह न भूलें ।
. 'पुक्खरवरदीवड्ढे, धम्माइगरे नमंसामि' - श्रुतस्तव है यह । प्रश्न : श्रुत की स्तुति है तो फिर तीर्थंकरों की स्तुति किस लिए ?
उत्तर : श्रुत धर्म के प्रवर्तक भगवान हैं । श्रुत की स्तुति अर्थात् भगवान की स्तुति, क्योंकि भगवान एवं श्रुत का अभेद है। आगमों की रचना गणधरों ने की है, परन्तु अर्थ से बताये तो भगवान ने ही है न ?
गणधर स्वयं कहते हैं : 'सुअस्स भगवओ' श्रुत भगवान है ।
. भाव तीर्थंकरों से भी नाम आदि तीन तीर्थंकर अत्यन्त उपकार करते हैं । भाव तीर्थंकरों का समय अत्यन्त ही अल्प होता है, परन्तु उनके शासन का समय अत्यन्त ही लम्बा होता है ।
बुद्धि अने श्रद्धा बुद्धि दाखला दलीलो करी संघर्ष उभो करे छे. श्रद्धा वडे आत्मा परमात्मामां डूबकी मारे छे, त्यारे समाधि मेळवे छे. बुद्धिए निर्णय करेलुं ज्ञान कथंचित् व्यवहारमा साचुं होई शके. आत्मज्ञान वडे प्रगट थतुं ज्ञान सर्वदा साचुं होय छे. तेने दाखला दलीलो वडे के कोई लेबोरेटरीमां चकासणी करवानी अगत्यता रहेती नथी. कारण के ए सर्वज्ञना स्रोतमांथी प्रगट थयेनुं छे.
************ कहे कलापूर्णसूरि - १)
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कहे