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कृपण हो तो ? मनुष्य कृपण हो सकता है, प्रभु नहीं हो सकते । प्रभु के गुण-कीर्तन से भक्त को लाभ होता ही है ।
जगत् में प्रभु के प्रभाव से ही सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । उसके प्रभाव से भवान्तर में भी सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है, अन्त में मोक्ष की भी प्राप्ति होती है ।
इस जन्म में प्रसन्नता, सम्यग्दर्शन... परलोक में सद्गति, सिद्धिगति प्राप्त होती है ।
तीर्थंकर भगवंतनो महिमा तीर्थंकर भगवंत मुख्यपणे कर्मक्षय, निमित्त छे. बोधि बीजनी प्राप्तिनुं कारण छे. भवांतरे पण बोधिबीजनी प्राप्ति करावे छे. तेओ सर्वविरति धर्मना उपदेशक होवाथी पूजनीय छे. अनन्य गुणोना समूहने धारण करनारा छे. भव्यात्माओना परम हितोपदेशक छे. राग, द्वेष, अज्ञान, मोह अने मिथ्यात्व जेवा अंधकारमांथी उगारनार छे तेओ सर्वज्ञ, सर्वदर्शी अने त्रैलोक्य - प्रकाशक छे.
(२९४ ****************************** कहे कलापूर्णसूरि - २)
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कहे