________________
के माणेकलाल जैसे ही, आकृति-प्रकृति से मिलते-जुलते ।
दादीमा शेरबाई व माता खमाबेन से मुझे धर्म-संस्कार मिलते रहते थे ।
मेरा शरीर कोमल होने की वजह से, छोटा था तब गांव में लोग मुझे 'माखणियो' कहते थे ।।
- आठ वर्ष की उम्र में घरों के निर्माण में चूने की भट्ठी में होता आरंभ-समारंभ देखकर मैं उद्विग्न हो उठता था। उस वक्त मुझ में वैराग्य के सामान्य बीज पड़े।
मामा माणेकलाल का मुझ पर बहुत ही प्रेम । आठ वर्ष का मैं था तब वे मुझे हैद्राबाद ले गये थे । एक वर्ष के बाद वहां. प्लेग का रोग फैलने पर सेंकड़ों आदमी फटाफट मरने लगे । यह जानकर मेरे माता-पिता ने मुझे तुरंत फलोदी बुला लिया ।
फलोदी में कुन्दनमल शिक्षक से मुझे अंक-ज्ञान मिला । हिसाब-किताब आदि पारसमलजी ने मुझे सीखाया । उस वक्त दूसरी कक्षा से इंग्लीश चलती थी। पांचवी कक्षा तक पढा हूं । हर वक्त पढने में प्रथम नंबर रहता था । मेरा अभ्यास देखकर शिक्षक प्रसन्न होते थे । मुझे तीसरी में से सीधा पांचवी कक्षा में रख दिया। चौथी कक्षा के अभ्यास की मुझे जरूरत नहीं पड़ी ।
मेरे जन्म से पहले चार भाई तथा दो बहनें मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे । सब से छोटा होने से मामा को मैं प्रिय था । चंपाबेन और छोटी बेन दोनों मुझसे बड़ी है । अभी (वि.सं. २०४१) चंपाबेन जीवित है ।
नेमिचंद बछावत की मां मोड़ीबाई रास-चरित्रादि पढते, सब को इक्कट्ठा कर के सुनाते । मैं भी गली के किनारे जाता
और सुनता, वैराग्य जैसा कुछ होता । मुझे भी महापुरुष जैसे बनने का मन होता था। अइमुत्ता, शालिभद्र इत्यादि जैसा पवित्र जीवन जीने का मन होता था । झगड़ा करना कभी सीखा नहीं हूं। शिक्षक ने मुझे मारा हो, ऐसा कभी याद नहीं आता ।
छोटा था तब से ही आवश्यकतानुसार ही बोलता ।
मामा का मुझ पर पूरा प्रेम था। उन्हें ऐसी लगन थी कि मुझे इस अक्षयराज को अच्छी तरह से तैयार करना है। १३ वर्ष की उम्र में वे मुझे पुनः हैद्राबाद ले गये थे । ढाई वर्ष तक वहां
29