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भी के दर्शनार्थ लोगों की भीड़, सुरेन्द्रनगर, वि.सं. २०५६
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(पू. कल्पतरुविजयजी, पूर्णचन्द्रविजयजी एवं मुनिचन्द्रविजयजी का
भगवती के जोग में आज प्रवेश हुआ)
२०-९-१९९९, सोमवार
भा. सु. १० गोचरी के बाद ही पच्चक्खाण पारने होते हैं । पहले कैसे पारे जायें ? गोचरी प्राप्त होगी ही, ऐसा विश्वास है क्या ?
'प्राप्त हो जाये तो संयम-वृद्धि, अन्यथा तपोवृद्धि ।' यह सोचकर गोचरी लेने के लिए निकलना है ।
आज-कल जिस प्रकार वापरने से पूर्व 'दशवैकालिक' की १७ गाथाओं का स्वाध्याय है, उस प्रकार 'दशवैकालिक' की रचना से पूर्व भी 'आचारांग' आदि का स्वाध्याय था ही । ऋषभ आदि के तीर्थों मे भी उन-उन ग्रन्थों का स्वाध्याय था ही ।
. क्षयोपशम हमारा कितना मन्द है ? याद रखा हुआ तुरन्त ही भूल जाते हैं । आश्चर्य की बात यह है कि भूलने योग्य अपमान आदि तो भूलते नहीं है, परन्तु नहीं भूलने योग्य आगमिक पदार्थों को तुरन्त ही भूल जाते हैं । • राग-द्वेष का क्षय या उपशम करें तो ही कर्मबंध रुकता है।
** कहे कलापूर्णसूरि - १
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कहे