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नगर दिन--10
९-९-१९९९, गुरुवार
भा. व. ३०
'नाम ग्रहंतां आवी मिले, मन भीतर भगवान...'
प्रभु-नाम मन्त्र का, मूर्ति का स्मरण-दर्शन करने से, परमात्मा के केवलज्ञान आदि गुणों का ध्यान करने से मानो साक्षात् प्रभु हमारे समक्ष खड़े हो, मानो वे भक्त को बुला रहे हों ऐसे अनुभव होते हैं ।
__ भक्त को विचार आता है कि यह स्वप्न है क्या ? दिखते हुए भगवान मेरे हृदय में प्रविष्ट हो गये हैं। भगवान मानो मुझे बुला रहे हों, अंग-अंग में व्याप्त हो गये हों वैसे अनुभव होते हैं । ऐसे अनुभव प्रतिमा-शतक में यशोविजयजी ने बताये हैं ।
क्या यह बात सत्य होगी ? वीतराग, सिद्धशिला पर स्थित भगवान इस काल में कैसे आ सकते हैं ?
जैनों के मत से मोक्ष में गये हुए भगवान नीचे आते नहीं । राम, कृष्ण, शंकर आदि दर्शन देते हैं, परन्तु वीतराग कैसे दर्शन देंगे? उपाध्याय यशोविजयजी म. जैसे प्रखर विद्वान भी ऐसे शब्द लिखें तो अनुभव-रहित बात तो होगी ही नहीं ।
कौन सी बात सत्य है ? दोनों बातें सत्य हैं ।
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