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लगता है।
" क्यों हम इतना बकवास करते हैं ? क्यों अपनी शक्ति नष्ट करते हैं ? मौन रखने से ऊर्जा की वृद्धि होती है । मौन अर्थात् वाणी का उपवास । मन से विचारों की खलबली छोड़ें । मन का उपवास करो ।
मौन रहे वह मुनि है । वाणी पर संयम रखने वाला वाचंयम है । सिर्फ गोचरी करते समय ही नहीं, अन्य समय में भी जो मौन रहता है वह मुनि है । इस प्रकार का मौन आयेगा तो शक्ति का संचय होगा ।
मन, वचन, काया से हम कमाई करते हैं कि नष्ट करते हैं ? संघट्टा लेते समय जैसे हम नहीं बोलते, उस प्रकार पडिलेहन-गोचरी आदि के समय भी नहीं बोलना चाहिये ।
भक्ति :
हे आत्मन् ! अब मैं तुझे कभी दुर्गति में नहीं भेजूंगा । इतना निश्चित करो । अन्य पर नहीं तो अपनी आत्मा पर तो दया करो ।
जिनको दीक्षा ग्रहण करने को नहीं मिला वे नहीं मिलने का खेद करते हैं और हम यदि आलस करें तो ?
संयम सफल करने के लिए दो वस्तु सरल हैं - भक्ति तथा ज्ञान । अन्य परिषह आदि तो हम सहन नहीं कर सकते । भक्ति बढने के साथ आनन्द बढता है । भक्ति का सम्बन्ध आनन्द के साथ है।
महापुण्योदय से हमें भक्ति करने की इच्छा हुई, अन्यथा इच्छा भी कहां होती ?
हम भक्त के लिए समय निकाल सकते हैं, परन्तु स्वयं भक्त बन कर परमात्मा के लिए समय नहीं निकाल सकते ।
यदि प्रेमलक्षणा भक्ति का अभ्यास करना हो तो उपा. यशोविजयजी की चौबीसी कण्ठस्थ कर लो । फिर आपको क्रमशः एक के बाद एक सोपान मिलते जायेंगे ।
भगवान के साथ प्रेम में कहीं भी जोखिम नहीं है । जीवों के साथ प्रेम करने में राग उत्पन्न हो सकता है । प्रेम बहुत कपटी शब्द है। कहे कलापूर्णसूरि - १ ******
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