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पुस्तक देते हुए कहा, 'इसमें सच्चा अध्यात्म है, पढना ।' पुस्तक खोलते ही भीतर पढने को मिला, 'उपादान ही मुख्य है । निमित्त अकिंचित्कर है ।'
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मैंने तुरन्त पुस्तक रख दी और उस व्यक्ति को कहा, 'यह अध्यात्म नहीं है ।'
मैं समस्त साधु-साध्वीयों को बताना चाहता हूं कि जहां देव - गुरु की भक्ति न हो, वहां किसी अनुष्ठान में सच्चा अध्यात्म न मानें ।
पू. देवचन्द्रजी महाराज कहते हैं : 'कोठी में हज़ार वर्षों तक बीज पड़े रहेंगे तो भी वे वैसे के वैसे ही पड़े रहेंगे, परन्तु उन्हें भूमि में बोया जाये तो ?
'बीजे वृक्ष अनन्तता रे, प्रसरे भू-जल योग' - पू. देवचंद्रजी उस प्रकार हम भी भगवान के संयोग को पाकर अनन्त बन सकते हैं। बीज को यदि भूमि, पानी आदि प्राप्त नहीं हो तो वह अपने आप वृक्ष नहीं बन सकता, उसी प्रकार जीव अकेला ही शिव नहीं बन सकता ।
इस बात की ओर आप किसी का ध्यान नहीं है, जिसका मुझे बहुत ही दुःख है । क्यों किसी की दृष्टि नहीं जाती ? पू. देवचन्द्रजी महाराज ने प्रथम स्तवन में 'प्रीतियोग' बताया है । षोडशक योगविंशिका आदि में प्रीतियोग बताया है, वह प्रभु का प्रेम समझें ।
प्रभु के प्रेम के कारण ही मार्ग भूल नहीं पाये हैं । इसी कारण 'सुहगुरुजोगो' प्रभु के पास नित्य मांगते हैं ।
जिस व्यक्ति के ऊपर गुरु होगा, वह कभी पथ - भ्रष्ट नहीं होगा । गांव के लिए मटके बनाने का उत्तरदायित्व कुम्हार का है, उस प्रकार जीव में से शिव बनाने का उत्तरदायित्व भगवान का है । यदि मिट्टी को कुम्हार नहीं मिले तो अपने आप मटका नहीं बन पायेगा । भगवान के बिना हम भी भगवान नहीं बन पायेंगे ।
पंचवस्तुक :
✿ गोचरी के लिए भोजन के समय ही जायें, आगे-पीछे न जायें, क्योंकि ऐसा करने में पूर्व कर्म
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पश्चात्-कर्म का दोष
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****** कहे कलापूर्णसूरि - १
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