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चैत्यवन्दन के समय भाव उत्पन्न क्यों नहीं होते ? जिनका मैं चैत्यवन्दन करता हूं, वे कैसे हैं ? उनका स्वरूप अभी तक हम नहीं समझे ।
अर्थ जानेंगे, भगवान की महिमा समझेंगे, त्यों त्यों आनन्द की वृद्धि होगी। आनन्द की वृद्धि के साथ शुद्धि की वृद्धि होती है और शुद्धि की वृद्धि के साथ आनन्द की वृद्धि होती हैं ।
इस प्रकार यह अमृतचक्र है । एक दूसरे पर आधारित है। एक से दूसरे को प्रोत्साहन मिलता है ।
अजितनाथ भगवान के समय में सर्वोत्कृष्ट मानवों की आबादी थी । उस समय तीर्थंकर भी सर्वत्र थे - १७०, नौ करोड़ केवली एवं नौ हजार करोड़ (नब्बे अरब) मुनि थे ।
इस समय बीस तीर्थंकर हैं । दो करोड़ केवली एवं दो हजार करोड़ (बीस अरब) साधु हैं । अब उत्सर्पिणी में तेईसवे तीर्थंकर के समय में उत्कृष्ट से १७० तीर्थंकर होंगे ।
एक तीर्थंकर का परिवार : दस लाख केवली, सो करोड़ मुनि (एक अरब) होता हैं ।
पूज्यपाद अध्यात्मयोगी सूरिदेवना काळधर्मना समाचार हमणां ज सांभळ्या । आंचको अनुभव्यो । देववंदन कर्यु ।
पूज्यश्रीनी विदायथी मात्र आपना समुदायने ज खोट पडी छे एवं नथी । आपणे बधा दरिद्र बन्या छोए... आप सहनी वेदनामां अमारूं पण समवेदन जाणशो ।
आपना उपर आवी पडेली जवाबदारी सुंदर रीते वहन करवानुं सामर्थ्य आपने मळी रहे ए ज प्रभु पासे प्रार्थना ।।
महापुरुषोनी अणधारी विदाय शून्यता थोड़ी वार उभी करे छ । परंतु तेओ दिव्य रूपे अनेक गणी वधु शक्ति साथे आपणी साथे होय छे... आपने पण आ वातनी प्रतीति थशे ज... आप स्वस्थ बनी जशो। संघने निश्रा आपी पालीताणा पधारो...
- एज... मुनिचंद्रसूरिनी अनुवंदना
* म.स. ४, गांधीनगर. AM
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