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भी सांस लो तो टिकेगा । यहां भी श्रुत, सम्यक् सामायिक आयुष्य एवं सांस के स्थान पर है ।
आवश्यक नियुक्ति में सामायिक के तीन प्रकार बताये हैं : १. श्रुत, २. सम्यक् और ३. चारित्र सामायिक । 'आया सामाइए, आया सामाइअस्स अट्टे'
- भगवती सूत्र आत्मा सामायिक है, सामायिक का अर्थ है - 'भगवई अंगे भाखियो, सामायिक अर्थ, सामायिक पण आतमा, धरो शुद्धो अर्थ' - यशोविजयजी रचित - १२५ गाथा का स्तवन । शंका : तो फिर समस्त जीवों में सामायिक घट जायेगी ।
समाधान : संग्रह नय से घटती है । नय पद्धति जैनदर्शन की मौलिक विशेषता है ।
नय पद्धति जाने बिना अनेक घोटाले हो जाते हैं ।
संग्रह नय से समस्त जीव सिद्ध के समान है। व्यवहार नय जिस समय जो हो वह मानता है, कर्मसत्ता को आगे रख कर चलता है, उसके बिना व्यवहार नहीं चलता, 'मेरे उधार पैसे वहां पड़े हैं । मुझे माल दो । आप वहां से वसूल कर लें ।' क्या ऐसे बाजार में चलता है ? अतः आत्म-स्वभाव में रमणता हो वहां सामायिक समझें ।
यह सामायिक कैसे प्राप्त की जाये ? उसके उपाय शेष पांच आवश्यकों में क्रमशः मिलते जायेंगे ।
. ज्ञान पढने से नहीं, विनय-सेवा से आता है । इसीलिए अभ्यन्तर तप में विनय का स्थान स्वाध्याय से पूर्व रखा गया है। विनय करने पर ज्ञान की प्राप्ति होती है, स्वाध्याय हो सकता है । विनय से प्राप्त ज्ञान से अभिमान नहीं आता ।
विनय कौन कर सकता है ? जो स्वयं को लघु, तुच्छ मानता है वही विनय कर सकता है । जो तुच्छ मानता है वही प्रायश्चित्त कर सकता है । मुख्य आभ्यन्तर तप है परन्तु बाह्य तप उसे पुष्ट करता है। बाह्यं तदुपबृंहकम् ।
- ज्ञानसार. कहे कलापूर्णसूरि - १ *******
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