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- चैत्यवंदन करते हुए पूज्यश्री, बेंगलोर के पास, वि.सं. २०५१
२६-८-१९९९, गुरुवार
श्रा. सु. १५
अन्यून, अतिरिक्त, विपर्यास - इनके आधार पर पडिलेहन के आठ भांगे होंगे । इनमें अन्यूनारिक्त (अघिक भी नहीं, कम भी नहीं) एक भांगा शुद्ध ।
पडिलेहन का समय कब ? कोई कहता है- मुर्गा बोलता है तब, कोई कहता हैअरुणोदय होने पर।
कोई कहता है - प्रकाश आ जाये तब, कोई कहता है : हाथ की रेखाएं दिखाई दें तब ।
कोई कहता है - उपाश्रय में एक-दूसरे का मुंह दिखाई दे तब ।
सही समय है सूर्योदय से थोड़ा पहले । चरम पोरसी में प्रतिक्रमण स्वाध्याय आदि होने के बाद ।
. प्रथम प्रहर का चौथा भाग बाकी रहे तब प्रातः उघाड़ापोरसी आती है।
. हमारे द्वारा समस्त जीवों को सन्तोष प्राप्त हो तो ही संयम सार्थक बनता है । यदि एक जीव भी आप से असन्तुष्ट होगा तो साधना में मन नहीं लगेगा ।
देह के किसी भी भाग में चोट लगे, पीड़ा हमें होगी, पूरे देह कहे कलापूर्णसूरि - १ ****
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