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अभय-दान का घोषणा-पत्रक ! दया, करुणा के बिना दीक्षा टिकती नहीं है । यह केवल मन से नहीं चलता, व्यवहार में आना चाहिये । साधु इन्हें व्यवहार में लाते है । गृहस्थ ऐसा नहीं कर सकते । मंडिक चोर की कथा : वध-योग्य चोर को अन्य रानियों ने एक ही दिन के लिए बचाया और भक्ति की, जब कि अमानिती रानी ने जीवनभर के लिए अभयदान दिया । खाने-पीने के लिए सादे में सादा खाना-पीना दिया। श्रेष्ठतम मिठाई से चोर को अभयदान अधिक प्रिय लगा । सचमुच जीव को सर्वाधिक प्रिय अभयदान हैं ।
मरते हुए को बचाना अभयदान है, अहिंसा है ।
जीवित व्यक्ति को सहायता करना दया है ।
हृदय में छलकती करुणा दो तरह से प्रकट होती है नकारात्मकता से और हकारात्मकता से । अहिंसा करुणा का नकारात्मक प्रकार है और दया हकारात्मक ।
जीवों को कत्लखाने से बचाना अहिंसा है । उन जीवों को पांजरापोल में निभाना दया है । अहिंसा के जितना ही महत्त्व दया का है । कभी कभी इससे भी अधिक है । मरते हुए जीव पर शायद सभी दया करेंगे, परन्तु जीवित पर दया विरले ही करते हैं ।
अहिंसा से प्रधान रूप से संवर- निर्जरा होती है, दया से पुन्य होता है । साधु के लिए अहिंसा मुख है, गृहस्थों के लिए दया मुख है ।
जीवों को पीड़ा न हो उसकी सावधानी साधु रखे । जीवों का जीवन-यापन सुखपूर्वक हो, उसकी सावधानी गृहस्थ रखे । अहिंसा अभयदान से टिकती है और दया दान से टिकती है दान - रहित दया केवल बकवास है ।
✿ गुरु शिष्यों का स्वजनों आदि से वियोग करा कर पाप नहीं करते, आत्मा के भुलाये गये क्षमादि स्वजनों के साथ मिलाप कराते है ।
संयम जीवन में शुद्ध उपयोग पिता है । धृति ( आत्मरति ) माता है । समता पत्नी है । सहपाठी साधु ज्ञाति है ।
कहे कलापूर्णसूरि - १ ***
ज्ञानसार
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