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है, कर रहे हैं, यह मान लीजिये । भगवान देख रहे हैं - 'यह भक्त मेरे नाम एवं मूर्ति पर कितना प्रेम रखता है, थोड़ा यह देखने तो दो । जो मेरे नाम एवं मूर्ति पर प्रेम नहीं रख सकता, वह मुझ पर प्रेम रखेगा, यह माना नहीं जा सकता ।
. द्रव्य का द्रव्य में संक्रमण नहीं है, गुणों का संक्रमण है। चांदनी है, वहां चन्द्रमा हैं । गुण हैं वहां प्रभु हैं । गुणों के रूप में सर्वत्र प्रभु बिराजमान हैं ।
प्रभु का प्रेम अर्थात् गुणों का प्रेम, साधना का प्रेम । गुणों पर प्रेम प्रकट हुआ है तो गुण आयेंगे ही । व्यक्ति एक-दूसरे में संक्रान्त नहीं होता परन्तु गुण संक्रान्त होते हैं । शक्कर, आटा + घी में जाये तो सीरा बन जाये, दूध को मधुर बना दे । उस प्रकार भगवान भी गुणों के रूप में आकर हमारे जीवन को, हमारे व्यक्तित्व को मधुर बना देते हैं ।
__ अमे तो वडस्माथी छ'री' पालता शंखेश्वरजीना संघमां हता अने समाचार मळ्या । अध्यात्मयोगी आ. श्री कलापूर्णसू. म. नो स्वर्गवास थयो । आघात लाग्यो । केवा उत्तम योगी हता? मने तो अंगत रीते गया वर्षे के.पी.ना अने भेरुतारकना प्रसंगोमां जे निकटतामा रहेवानुं मळ्युं ते मारा जीवननी यादगार क्षणो बनी रही । मारा उपर तेओनो कृपापूर्ण दृष्टिपात मने मळ्यो छे । तेओ तो पोतानी साधना आगळ धपाववा वधु उंचा स्थाने पधार्या छे । आपणी पासे तेमना जीवननो एक श्रेष्ठ नकशो मूकी गया छे । ।
तमो बधाने खूब ज आघात लाग्यो हशे ! अने आवा स्वजन सूरि गुरुवरनो विरह वसमो होय छे. सरोवरने हंसनो वियोग वेठवो मुश्केल होय छे पण हंस तो ज्यां पण जाय त्यां शोभा अने सन्मानने पामे छे ।
आम साव अचानक ज चाल्या जशे 'आवजो' कहेवा पण नहीं रोकाय एवी कल्पना न हती । पण आ तो कुदरतनो अकाट्य कायदो छे, जे मान्या विना छूटको नथी।
- एज... प्रद्युम्नसूरिनी अनुवंदना
२४-२-२००२, शंखेश्वर.
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