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जो आमतौर से उन्हें होता रहता था । उस वक्त कड़ाके की शर्दी थी । एक बार तो ठंडी शून्य डीग्री तक पहुंच गई थी । तब किसी को यह कल्पना तक नहीं थी कि यह जुखाम पूज्यश्री के लिए जानलेवा बनेगा । सामान्य आयुर्वेदिक उपचार होते रहे । माघ. शु. १ को पूज्यश्री ने राजस्थान के केशवणा गांव (जालोर से १० कि.मी. दूर) में प्रवेश किया । मांगलिक व्याख्यान भी फरमाया । यह पूज्यश्री का अंतिम व्याख्यान था ।
(पूज्यश्री की अंतिम वाचना रमणीया गांव में पो.व. ६ (महा व. ६) को हुई थी । रमणीया गांव के लालचंदजी मुणोत (अभी मद्रास) ने पूरे गांव में घोषणा कराई थी: आज प्रभु की देशना है। सभी जरुर-जरुर आना ।
म उस दिन पूज्यश्री ने वाचना में कहा : ललित विस्तरा ग्रन्थ का अध्ययन - मनन जरुर करना । अगर संस्कृत में आप नहीं समझ सकते है तो मेरे गुजराती पुस्तक (6 सासूर - भाग 3-४) को तो जरुर जरुर पढना ।)
उसके बाद फिर एक घंटे तक मंदिर में प्रभु-भक्ति की । फिर उपाश्रय में उपर ही ठहरे ।
पूज्यश्री को सांस की तकलीफ चालु थी। पिछले दो-तीन दिन से तो नींद भी नहीं आई । फिर भी प्रसन्नता, स्वस्थता स्वस्थ शरीर जैसी ही थी । सदा पास में सोनेवाले पू.पं. कल्पतरुविजयजी भी पूज्यश्री की चिन्ता से नींद नहीं ले सकते थे। फिर भी डॉकटरों को इसमें कोई गंभीर बिमारी के चिह्न दिखाई नहीं दिये । जालोर के प्रसिद्ध डॉकटर अनिल व्यास तथा अजमेर के पूज्यश्री के अंगत डॉकटर जयचंदजी वैद आदि सभी ने यही कहा : कोई गंभीर बात नहीं है । डॉकटरों ने कार्डियोग्राम निकाला था, B.P. आदि चेक किया था, सब ठीक था । फिर भला डॉकटरों को कैसे पता चले ? पूज्यश्री भी सब के साथ यथावत् दैनिक व्यवहार करते थे, बातचीत करते थे। इसमें मृत्यु का विचार ही किसीको नहीं आया । हां, पूज्यश्री तो मृत्यु के संकेत देते ही रहे थे, जो कि बाद में समझ में आये ।
माघ शु. १ को एक आदमी (बादरभाई, जो विगत बारह वर्षों से हर सु. १ को पूज्यश्री का वासक्षेप लेने के लिए आता था) को वासक्षेप डालने के बाद कहा : 'अब तू वासक्षेप लेने के लिए इतने दूर मेरे पास मत आना,