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को उल्लसित करती है ।
भगवान चाहे मोक्ष में है, परन्तु गुण रूपी चांदनी समग्र पृथ्वी पर फैली हुई है।
अन्धे व्यक्ति के लिए सूर्य क्या और चन्द्रमा क्या ? उसके पास चांदनी का प्रकाश नहीं पहुंचता । उसके हृदय के द्वार बंद है, उसके पास भगवान की कृपा की किरणें नहीं पहुंच सकती । प्रभु के गुणों की सुगन्ध सर्वत्र है, उसके लिए 'नाक' चाहिये । प्रभु की गुण-चांदनी सर्वत्र है, उसके लिए 'आंखें' चाहिये ।
'सम्पूर्ण मण्डल-शशांक-कला-कलाप' भक्तामर के इस श्लोक के अर्थ का विचार करना । जौहरी को पता लग जाता है कि 'यह पत्थर नहीं है, हीरा है ।'
भक्त को पता लग जाता है - यह प्रभु कृपा है, सामान्य बात नहीं है । सम्पूर्ण भक्तामर प्रभु-नाम की स्तुति ही है। देखने की दृष्टि चाहिये । भक्त का हृदय चाहिये, आपके पास ।
जहां भगवान के गुण हों वहां भगवान होंगे कि नहीं ? जहां गुण हों वहां द्रव्य होगा ही । द्रव्य के बिना गुण रहेंगे कहां ? जहां चांदनी है वहां चन्द्रमा होगा ही ।
दर्पण रख कर देखें । स्वच्छ जल की थाली भर कर रखें । हृदय को दर्पण के समान स्वच्छ बनायें । प्रभु-चन्द्र ये रहे ।
हाल हमणा ज पूज्यश्रीना समाचार मळ्या । भूकंप करतां पण जोरदार आंचको अने ध्रासको हृदयने हलबलावी गयो ।
___ अमारो एक आलंबन स्तंभ तूटी गयो । आदर्श, दर्पण चूर थई गयुं । अमो स्वयं व्यथित छीए । आपश्रीओने शुं आश्वासन आपी शकीये ? छतां स्वस्थ रहीने कर्तव्यनी आवी पडेली शिलाने संभाळजो ।
- एज... आपना ज बंधुओ जिनचंद्रसागरसूरि - हेमचंद्रसागरसूरि
१६-२-२००२, सुरत.
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कहे