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में कहां से लायें ? 'राजा नो ददते सौख्यम् ।' इस वाक्य के आठ लाख अर्थ होते हैं । पंजाबी युवकों को उत्तर देने के लिए समयसुन्दरजी ने आठ लाख अर्थ करके बताये थे ।
'लोगस्स' का नाम है - नामस्तव । नामस्तव अर्थात् नाम के द्वारा भगवान की स्तुति । एक प्रतिक्रमण में कितने लोगस्स आते हैं ? गिन लेना ।
काउस्सग्ग में लोगस्स के स्थान पर लोगस्स ही चलता है । नवकार नहीं चलता । यह विधि है । लोगस्स नहीं आता हो तो उनके लिए नवकार ठीक है ।
सूर्य-चन्द्र का प्रकाश सूर्य-चन्द्र में ही सीमित नहीं रहता, चारों ओर फैलता है । रत्नों आदि का प्रकाश स्व में ही सीमित रहता है । भगवान का ज्ञान-प्रकाश स्व में ही सीमित नहीं रहता, सर्वत्र फैलता है । इसीलिए प्रभु को 'लोगस्स उज्जोअगरे' (ज्ञानातिशय) कहा जाता है। लोक में उद्योत करने वाले प्रभु हैं । अतः वे धर्मतीर्थ की स्थापना कर सके हैं । 'धम्म - तित्थयरे' (वचनातिशय) 'जिणे' (अपायापगमातिशय) 'अरिहंते' (पूजातिशय) यहां चार अतिशय भी समाविष्ट है ।
पंचवस्तुक प्रश्न : हमारे रहने के लिए मकान है । साधु के रहने का स्थान कौन सा ?
उत्तर : तत्त्व से साधु आत्मा में ही रहते है । परम समता में मग्न रहने के कारण चाहे जैसे स्थानों में राग-द्वेष आदि नहीं करते ।
धर्मशाला अच्छी हो या बुरी, उसमें आप राग-द्वेष नहीं करते । उस प्रकार साधु भी राग-द्वेष नहीं करते । साधु दूसरों के द्वारा निर्मित स्थान पर ठहरते है, वे स्वयं निर्माण नहीं करते - नहीं कराते । यदि वे अपने लिए बनाये तो 'ममेदं स्थानम्' यह मेरा है, इस प्रकार ममत्व होता है ।
प्रश्न : साधु को गृहस्थों की तरह आहार पानी न मिलने पर, कष्ट होता होगा न ? कहे कलापूर्णसूरि - १ **********
कहे
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