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पू. सा. सुवर्णप्रभाश्रीजी
(मां महाराज) का समाधिपूर्ण स्वर्गवास
भरूच, वै. सु. १४
शनिवार विजयकलाप्रभसूरि की ओर से अनुवंदना / धर्मलाभ । - विशेष विदित कर रहे हैं कि पूज्य तारक गुरुदेव के वियोग से व्यथित हमारी आंखों के आंसु सूखे न सूखे, हृदय के घाव रुझान पाये - न पाये उतने में ही हृदय को हिलानेवाली दूसरी घटना घटी ।
सांसारिक संबंध की अपेक्षा हमारे मां महाराज साध्वीजी श्री सुवर्णप्रभाश्रीजी, कि जो सा. सुनंदाश्रीजी के शिष्या थे । वे वै. सु. १३, शुक्रवार, २४-५-२००२ की शाम को ४.३० बजे भरूच में समाधिपूर्वक कालधर्म पाये हैं ।
_ 'कर्म के आगे किसी की नहीं चलती' 'भवितव्यता को यही मंजूर होगा' ऐसा मान कर हृदय को समझाना रहा ।
शंखेश्वर से चातुर्मास के लिए वलसाड़ की ओर विहार करते हुए वे समनी गांव में आये । असह्य गर्मी आदि के कारण स्थंडिल की तकलीफ हुई । ३५/४० वक्त जाना पड़ा और एकदम ढीले हो गये ।
सुश्रावक कान्तिलालभाई, सुरेशभाई भंडारी (फलोदी, अभी अंकलेश्वर) को समाचार मिलते ही वे तुरंत भरूच से डॉ. सुनील शाह को लेकर समनी पहूंच आये । तात्कालिक उपचारों से कुछ राहत प्रतीत हुई । दूसरे दिन विहार कर के देरोल आये । वहां भी तबीयत बिगड़ने पर डॉ. सुनीलभाई आ गये । तुरंत इलाज किये। उनकी सलाह के अनुसार मां महाराज को होस्पिटल में दाखिल किये । कार्डियोग्राम आदि रिपोर्ट नोर्मल थे, किन्तु अत्यंत कमजोरी, खून की कमी, गेस की तकलीफ आदि के लिए जरूरी उपचार शुरु किये । थोड़ी राहत प्रतीत हुई, लेकिन होना चाहिए वैसा सुधार नहीं हुआ ।