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निकाल सकते ? जब आप प्रभु-भक्ति में गहरे उतरेंगे तो समझेंगे कि स्वाध्याय, पठन, सम्पादन, संशोधन, अध्ययन, अध्यापन, जाप, ध्यान, सेवा आदि समस्त प्रभु-भक्ति के ही प्रकार हैं। अभी आपके ये कार्य शुष्क हैं क्योंकि उनमें भक्ति उतरी नहीं हैं । यदि भक्ति का डोरा जुड़ जाये तो इन समस्त कार्यों के मणके माला बन कर आपके कण्ठ में सुशोभित बनेंगे ।
२१. 'सेव्यो देशो विविक्तश्च' - योगी को एकान्त स्थान पर रहना चाहिये । इतना एकान्त पवित्र स्थान (वांकी) इतने वर्षों में नहीं मिला था । साधना के लिए यह वांकी क्षेत्र अत्यन्त उत्तम है, अतः यहां रह कर साधना पर जोर दें । जाप-ध्यान आदि की जितनी अनुकूलता यहां मिलेगी, इतनी अन्यत्र नहीं मिलेगी।
. ९२ वर्षीय साध्वी लावण्यश्रीजी म. आज दोपहर में कालधर्म को प्राप्त हुए हैं । ये साध्वीजी अत्यन्त ही गुणवान थीं । मुझसे दुगुना उनका दीक्षा-पर्याय था अर्थात् मेरी आयु जितना उनका दीक्षा-पर्याय था । गुणों से भी वे वृद्ध थीं। इतनी वेदना में भी उन्होंने अपूर्व समाधि रखी । वे बुद्धिमान भी बहुत थी । उन्होंने उस युग में अठारह हजारी की थी। वे गत १५ वर्षों से अस्वस्थ थीं । उनके साथ रहनेवालों ने भी कमाल किया हैं। उनकी अपूर्व सेवा की है। उन सेवा करनेवालों की जितनी अनुमोदना करें उतनी कम है। ____ हम भी कभी वृद्ध होंगे, इस जगत् में से बिदा लेंगे । यह हकीकत कभी न भूलें ।
ऐसे प्रसंग पर अपना भावी मृत्यु देखना । जिस व्यक्ति को प्रति पल अपनी मृत्यु दिखाई दे, वह वैरागी बने बिना कभी नहीं रह सकता । मृत्यु की प्रत्येक घटना हमारे वैराग्य की वृद्धि करनेवाली होनी चाहिये ।
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कहे।