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इस प्रकार उच्छृखलता पूर्वक वर्तन करनेवाले सुसढ ने दूसरों के लिए भी ऐसी मिथ्या परम्परा खड़ी करने के निमित्त उत्पन्न किये । ऐसे व्यक्ति को भविष्य में स्वप्न में भी धर्म शब्द सुनने को नहीं मिलता । अबोधिदायक इन तीनों का त्याग करना आवश्यक है।
प्रश्न : छ माह तक का तप निरर्थक कैसे होता है ?
उत्तर : काय-क्लेश तो ऊंट, कुत्ते, गधे, बैल आदि भी बहुत करते हैं परन्तु जयणा कहां? जयणा-विहीन समस्त कायक्लेश निरर्थक
तप के प्रभाव से शायद देवलोक प्राप्त हो जायेगा, परन्तु उसके बाद का दृश्य भयंकर होगा, नरक तिर्यंच आदि दुर्गति ही प्राप्त होगी ।
प्रश्न : छ: काय में से तीन में ही अबोधि क्यों होता हैं ?
उत्तर : छ:हों काय में पापारम्भ है ही, परन्तु इन तीनों की विराधना से अनन्त जीवों की विराधना होती है, जिससे महापापारम्भ है । समस्त संयम स्थानों में जयणा ही मुख्य है ।
अध्यात्मयोगी आचार्य श्री कलापूर्णसूरिजीना काळधर्म अंगेनो पत्र मळ्यो । वांची खूब ज दुःख थयुं । तेओश्रीना जवाथी शासनने न पूरी शकाय तेवी मोटी खोट पडी छे। तेओश्रीए पोताना परमात्मभक्ति, स्वाध्यायरसिकता, चारित्रशुद्धि, शासननिष्ठा आदि आगवा गुणोथी जगतने एक महान आदर्श आपेल छ । तेओश्रीना काळधर्मना समाचार मळतां ज ते ज दिवसे खीवान्दी मंगल भुवनमां सकल संघ साथे देववंदन तेमज गुणानुवाद करेल । जेमां आचार्यश्री अजितचंद्रसूरिजी म.सा., आचार्यश्री हेमप्रभसूरिजी म.सा. (आचार्यश्री नीतिसूरिजीनी समुदायना) आचार्यश्री धर्मधुरंधरसूरिजी आदि पधारेल ।
___ आचार्यश्रीनो आत्मा ज्यां होय त्यां शासनदेव तेमना आत्माने शांति आपे ।
- एज... अरिहंतसिद्धसूरिनी अनुवंदना
फा.सु. २, पालीताणा.
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